मृत्युभोज
सब खीर पूरी खा रहे,
हंस हंस के बतिया रहे,
कौन सा खाना कैसा बना है
खूबी कमियां गिना रहे,
घर के मुखिया के आंखों में आंसू है,
पर किसी को कोई गम नहीं,
खाने वाले खाएंगे उनको कोई रहम नहीं,
जाने वाले का गम तो रहेगा,
क्या खाने वाला खुश रहेगा,
हां बेचनी पड़ी है बीघे भर जमीन,
वहां भी लूट चुके हैं पटवारी और अमीन,
आज तो नहीं लेकिन कल सोचना ही पड़ेगा,
फसल किस जमीन पर होगी हल कहां गड़ेगा,
खुश रहना समाज के जिम्मेदार लोगों,
आपकी इच्छाओं का ख्याल रखा गया है,
पूरा परिवार होने के लिए हलाल रखा गया है,
अब तो जाने ही होंगे
जीवन बचाये रखने के लिए परदेस,
समाज के कर्णधारों का आ गया संदेश,
कि नोच लेंगे आपकी बोटी,
सदा से रही है सोच छोटी,
हमें मतलब नहीं कि घर वाले इस नियम से
कब उबर पाएंगे और कब तक रहेंगे प्रताड़ित,
पर सधते रहना चाहिए
चीलों की तरह नोचते रहने वालों का हित।
— राजेन्द्र लाहिरी