गीत/नवगीत

चरण चूमकर भारत माँ की, माटी का सम्मान करो

हम ही क्यों सब, पुण्य-पंथ के सुंदरतम प्रतिमान गढ़ें
हम ही क्यों सब, चीख-चीखकर बाइबल और कुरान पढ़ें
हम ही क्यों सब, खीर-सिवइयाँ ईद बहारों में बाँटे
हम ही क्यों सब, सांता बनकर केक और खुशियाँ बाँटे
हमने कब कहाँ, असि धार पर मज़हब का पैगाम दिया
कब हमने घुस, सघन वनों में धर्म लक्ष्य संधान किया
कहाँ बताओ हमनें छत से, सरे आम बम बरसाये
ज़रा दिखा दो उन जुलूसों को, जो पथ में थे घबराये
रहे देश इक छत के नीचे, सदा गीत हमने गाया
ताजुद्दीन-अजमेर-औलिया, सबको हमने अपनाया
कट्टरता को त्यागा हमने, सहिष्णुता की लाज रखी
धर्म जाति के भूल के बंधन, सदा प्रीत की खीर चखी
भाई-चारा, प्यार-मोहब्बत,क्या बस फ़र्ज़ हमारा है
जब हैं सब इक माँ के बेटे, सब क्यों कर्ज़ हमारा है
मिलकर बाँटो सुख-दुख सारे, अगर हिन्द के बेटे हो
तड़प रही है भारत माता, आँख बाँधकर लेटे हो
आओ तुम भी वचन निभाओ, वंदे मातरम् गान करो
चरण चूमकर भारत माँ की, माटी का सम्मान करो।

हम भी तो चाहें कि तुम भी, गीता-वेद-पुराण पढ़ो
हम भी तो चाहे कि तुम भी, मंदिर में आ गान करो
हम भी तो बंधुत्व-भाव की, लहर आपसे माँग रहे
बूचड़खाने बंद करो सब, भीख दया की माँग रहे
गायों की मत गर्दन काटो, इतना तो तुम ध्यान रखो
गोपालों की इस धरती पर, धेनु का सम्मान करो
अगर दिखाये आँखें दुश्मन, तुम भी डोरे लाल करो
बंगला-पाकी हो कोई भी, मिलकर उसे हलाल करो
हिरण्यकश्यप और दशानन तक, हमने दुत्कारा है
क्यों औरंगजेब और बाबर, तुमको जाँ से प्यारा है
भारत तेरे टुकड़े होंगे, जो दिन-रात मनाते हैं
क्यों ऐसे गद्दार दरिन्दे, तुमको अब तक भाते हैं
भक्ति भाव की रीत अनोखी, तुमने नयी बनायी क्यों
रूप बदल कर सावित्री संग, तुमने सेज सजायी क्यों
धोखा-छल करने में तुमसे, रावण भी है हार गया
कट्टरता का ज़हर तुम्हारा, मानवता को मार गया
धर्म नहीं है ये है वहशत, कितना भी अभिमान करो
चरण चूमकर भारत माँ की, माटी का सम्मान करो।

हो रसखान-जायसी-आलम, सब आँखों के तारे थे
अकबर-जिगर-शकील-मीर भी, हमको जाँ से प्यारे थे
हम हमीद की कुरबानी के, अब तक गीत सुनाते हैं
और कलाम की गौरव-गाथा, खुले कंठ से गाते हैं
हमने बिस्मिल्ला को पूजा, घर-घर गूँजी शहनाई
क्या कारण है अधर तुम्हारे, नहीं बाँसुरी लग पायी
जाकिर के तबले संग थिरके, तार विलायत संग साधे
ताजमहल-मीनारचार संग, हम आमेर भी आराधे
युग-युग से जब अवध की माटी, सबकी राजदुलारी थी
क्यों बाबर की बर्बरता संग, तुमने घोंपी कटारी थी
कालकोठरी मथुरा की, द्वापर की याद दिलाती है
यहीं मुरारी जनमे थे, क्यों बात समझ ना आती है
न सौहार्द्र प्रेम बंधन टूटे, करना इनकी रखवाली है
इक हाथ न कुछ कर पायेगा, बजती दोनो से ताली है
बँटकर-कटकर नापाक हुआ, इतिहास यही समझाता है
पत्ता टूटा गर शाखा से, वह हरदम ही मुरझाता है
ये जननी जन्मभूमि है, इसका मिल गौरव गान करो
चरण चूमकर भारत माँ की, माटी का सम्मान करो।

— शरद सुनेरी

Leave a Reply