कविता

कसक के साथ होने की तमन्ना

लम्हे जो बीत गए,
जन्नत की जगह थी।
पास ही है आज भी,
दिल में बसी हुई खुशियां और सुकून देने वाली ताकत थी।

यही कसक बिते हुए पलों को,
आवाज देने वाली बात कहती हैं।
नज़रों से देखा जाए तो,
बड़ी मुश्किल वक्त की,
एक महफ़िल में आनेवाले लोगों की,
बड़ी भीड़भाड़ दिखाई देती है।

ज्ञान दर्पण में उम्मीद है,
यही हकीकत है जीने की होड़ में,
पूरी होती मुरीद हैं।
पहले हम-सब हम क्या थे,
आज़ अब क्या हो गये हैं।
समन्दर पार करने वाले लोगों को,
हमेशा बस साथ ले गए हैं।

पुरानी यादों का एक बड़ा काफ़िला है,
नया इतिहास रचने वाले लोगों को,
दिखलाता एक सलीका है,
हमदर्दी जताते हुए आगे बढ़ने का,
बन जाती अनामिका है।

समन्दर है तो ज़िन्दगी की,
बारिकियों को समझने की,
जरूरत पड़ती है।
समग्र मूल्यांकन और अनुश्रवण की,
बातों में बहसबाजी चलती है।

— डॉ. अशोक, पटना

डॉ. अशोक कुमार शर्मा

पिता: स्व ० यू ०आर० शर्मा माता: स्व ० सहोदर देवी जन्म तिथि: ०७.०५.१९६० जन्मस्थान: जमशेदपुर शिक्षा: पीएचडी सम्प्रति: सेवानिवृत्त पदाधिकारी प्रकाशित कृतियां: क्षितिज - लघुकथा संग्रह, गुलदस्ता - लघुकथा संग्रह, गुलमोहर - लघुकथा संग्रह, शेफालिका - लघुकथा संग्रह, रजनीगंधा - लघुकथा संग्रह कालमेघ - लघुकथा संग्रह कुमुदिनी - लघुकथा संग्रह [ अन्तिम चरण में ] पक्षियों की एकता की शक्ति - बाल कहानी, चिंटू लोमड़ी की चालाकी - बाल कहानी, रियान कौआ की झूठी चाल - बाल कहानी, खरगोश की बुद्धिमत्ता ने शेर को सीख दी , बाल लघुकथाएं, सम्मान और पुरस्कार: काव्य गौरव सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, कविवर गोपाल सिंह नेपाली काव्य शिरोमणि अवार्ड, पत्राचार सम्पूर्ण: ४०१, ओम् निलय एपार्टमेंट, खेतान लेन, वेस्ट बोरिंग केनाल रोड, पटना -८००००१, बिहार। दूरभाष: ०६१२-२५५७३४७ ९००६२३८७७७ ईमेल - [email protected]

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