कसक के साथ होने की तमन्ना
लम्हे जो बीत गए,
जन्नत की जगह थी।
पास ही है आज भी,
दिल में बसी हुई खुशियां और सुकून देने वाली ताकत थी।
यही कसक बिते हुए पलों को,
आवाज देने वाली बात कहती हैं।
नज़रों से देखा जाए तो,
बड़ी मुश्किल वक्त की,
एक महफ़िल में आनेवाले लोगों की,
बड़ी भीड़भाड़ दिखाई देती है।
ज्ञान दर्पण में उम्मीद है,
यही हकीकत है जीने की होड़ में,
पूरी होती मुरीद हैं।
पहले हम-सब हम क्या थे,
आज़ अब क्या हो गये हैं।
समन्दर पार करने वाले लोगों को,
हमेशा बस साथ ले गए हैं।
पुरानी यादों का एक बड़ा काफ़िला है,
नया इतिहास रचने वाले लोगों को,
दिखलाता एक सलीका है,
हमदर्दी जताते हुए आगे बढ़ने का,
बन जाती अनामिका है।
समन्दर है तो ज़िन्दगी की,
बारिकियों को समझने की,
जरूरत पड़ती है।
समग्र मूल्यांकन और अनुश्रवण की,
बातों में बहसबाजी चलती है।
— डॉ. अशोक, पटना