कुण्डली/छंद

कुण्डली  छन्द

रोके हम आवेग को, कसना विनय लगाम।

मर्यादा बंधन भला, लगती प्रकृति ललाम।।

लगती प्रकृति ललाम, सादगी हर दिल जीते।

प्यासा हो इंसान, प्यास बुझती जल पीते।।

खिलता मन मधुमास, प्रेम से कोई टोके।

पिया करे मनुहार, प्रीत आवेग न रोके।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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