ग़ज़ल
जहां तनातनी हो, उसको टाला जाए,
मिलकर के कोई रास्ता निकाला जाए।
केवल हिन्दू-मुस्लिम की बात मत करिए,
कोशिश हो कि हर मुंह में निवाला जाए।
कोई भी धर्म सनातन से भी बड़ा है,
अपने मन में ये भ्रम न पाला जाए।
जीत का श्रेय सेनापति को ही न मिले,
सैनिकों के गले भी जीत की माला जाए।
देश जब बढ़ रहा हो प्रगति के पथ पर,
अपने स्वार्थ खातिर विघ्न न डाला जाए।
जिन्होंने पैदा किया और संभाला हमको,
समय आए तो अब उनको भी संभाला जाए।
बड़ी मुद्दत के बाद घर में रोशनाई है,
कोशिशें ये हों कि फिर से न उजाला जाए।
— सुरेश मिश्र