ग़ज़ल
प्यार उसका सुनो बदगुमां हो गया।
क़द उसी का अभी तो बड़ा हो गया।।
हुस्न देखा उड़ा आज चिलमन तभी।
मैं वहीं देखता ही खड़ा हो गया।।
जब पढ़े हैं कसीदे तिरे नाम के।
आज अपने लिए तू ख़ुदा हो गया।।
यह कहा था चलो घर अभी साथ ही।
बस उसी पल चला तू जुदा हो गया।।
ग़ैर के साथ उठ कर चला तू गया।
तब उसी का बड़ा राज़दां हो गया।।
जी रहे थे तुम्हारे लिए ही कभी।
दूर हो ही गये फ़ैसला हो गया।।
जी सके जो सुनो प्यार के ही लिए।
सब कहे जा रहे बावफ़ा हो गया।।
मत खुशी पर लगा देख पहरा कभी।
फिर न कहना जहां से फ़ना है गया।।
जब चलो साथ मेरे कहेंगे यही।
ख़ुशनुमा आज मेरा जहां हो गया।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’