मां प्रकृति
विशाल वसुंधरा का ये सुंदर आंगन,
पर्वत ऊंचे, खनिज लवण रतन धन,
नदियां, झरने, झीलें, कहीं रेगिस्तान,
कहीं गहरे समुद्र कहीं सघन मधुबन ।
विस्तीर्ण गगन क्षितिज के आर-पार,
बिखेरता खुशियों का निराला संसार,
छाई सौम्यता चहुं दिस अनन्य अपार,
सातों लोकों में सुख समृद्धि अपरंपार ।
ईश संरचना ये लौकिक परा लौकिक,
रमणीयता भी अद्भुत और अलौकिक,
मनमोहित करती है छटाएं प्राकृतिक,
“आनंद” प्रवाह सुखद तन मन आत्मिक ।
भांति-भांति के जीव जंतु यहां कलपते,
मां प्रकृति की गोद में सारे वृहद पनपते,
सूरज, चांद, सितारे, औ नक्षत्र चमकते,
समयानुसार अपना रंग रूप भी बदलते ।
ईश्वर की सब जड़-चेतन अनुपम कृति,
धरा पर जीवन चक्र की सृजित आकृति,
दूर हो वसुधा से प्रदूषण की छाई विकृति,
पर्यावरण संरक्षण के प्रति हो जन जागृति ।
— मोनिका डागा “आनंद”