वासंती छवि
तुम होते हो पास,
प्रेम की सरिता बहती है।
मन – दर्पण में,
वासंती छवि कविता कहती है।
अमरबेल की भाँति
लिपट जाते हो सीने से
छा जाती है मादकता
मधु मदिरा पीने से
प्रेमपगे फूलों की बातें,
तितली कहती है।
पीली सरसों बतियाती
गेहूँ की बाली से
हँसतीं – मुस्कातीं कलियाँ
इठलाती डाली से
जाने कैसी आग लगी
अंतस में दहती है।
एक झलक पाने को
आतुर नयन हुए आकुल
खोज रही प्रियतम को जैसे
हिरणी हो व्याकुल
छुईमुई कामना सजीली
गुमसुम रहती है।
तुम होते हो पास
प्रेम की सरिता बहती है।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र