कहानी – कच्ची उम्र का प्रेम
लवलीन अपने क्लासमेट को किताब की दुकान पर देख छत से नीचे उतरी और दुकान पर पहुँच गई।
“क्या ले रहे हैं ?”
सामने खड़ी लवलीन के प्रश्न से दीपक चौंक गया। क्लास की सबसे चंचल और एक्स्ट्रोवर्ट अपनी क्लासमेट को मुस्कुराते हुए जवाब दिया,”कुछ कॉपी और कलम खरीदने हैं।”
“ओह ,सामने ही मेरा मकान है। चलिए मेरे यहाँ, माँ से मिलाती हूँ।
दीपक गांँव से आया है,कॉलेज में पढ़ने।लवलीन का अपना शहर है। शहर के इंटर कॉलेज में दोनों फर्स्ट ईयर के छात्र हैं। लवलीन के पीछे -पीछे दीपक घर में प्रवेश करता है।
“माँ, मेरा क्लासमेट दीपक,दीपक कुमार सेन”,लवलीन दीपक का परिचय देती है
माँ मुस्कुरा कर दीपक का स्वागत करती है। दीपक पैर छूकर प्रणाम करता है।
लवलीन अपने स्टडी रूम में दीपक को बैठने के लिए कुर्सी की ओर इशारा करती है।
“आपने डिबेट कंपीटिशन में अपनी वाकपटुता और वाग्मिता से कमाल कर दिया। देर तक तालियाँ बजती रही।”
लवलीन की बातों से दीपक को खुशी होती है,”जी धन्यवाद, मुझे तो लगा था आप फर्स्ट होंगी। लेकिन जूरी ने मुझे फर्स्ट घोषित किया और आपको रनर अप।”
“जी जूरी का निर्णय बिल्कुल सही है। एक बात कहूँ आप मुझे तुम संबोधन करें तो मुझे ज्यादा खुशी होगी” लवलीन ने कहा।
“तो तुम भी मुझे तुम कह सकती हो।” दीपक ने अपनी राय दी।
“बिल्कुल ,लवलीन ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया। दीपक थोड़ी देर सकपका गया,फिर लवलीन की हथेली को अपनी मुट्ठी में लेकर कहा, “थैंक यू।” फिर देर तक दोनों ने पढ़ाई लिखाई की बातें करती रही।
“बेटा,तुम्हारी चर्चा लवली करती रहती है। दोनों खूब मन लगा कर पढ़ाई करो। लवली की अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं, थोड़ी मदद करना लवली की अंग्रेजी ठीक हो जाए।” लवलीन की माँ ने प्लेट में नमकीन और सूखी मिठाई दीपक के लिए लेकर आई थी।
दीपक को पंजाबी परिवार का सामाजिक परिवेश पसंद आया।
दीपक पढ़ने में तेज तो है ही,कॉलेज की अन्य गतिविधियों खासकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेता है। शिक्षकों के साथ -साथ कॉलेज के सभी छात्र छात्राओं की नजर में कॉलेज का स्टार है दीपक।
धीरे -धीरे लवलीन और दीपक की दोस्ती चर्चा का विषय बनती गई।
कॉलेज के बगल की कैंटीन में,लाइब्रेरी में और कॉलेज के निकट पहाड़ी तलहटी में दोनों को प्राय: एकसाथ देखकर अफवाहें फैलने लगी कि दोनों में सिर्फ दोस्ती ही नहीं प्यार भी है।
कुछ उदंड छात्रों ने कॉलेज की दीवारों और टॉयलेट में थर्टी प्लस फिफ्टी लिखना शुरू कर दिया। दीपक का रोल नंबर थर्टी है और लवलीन का फिफ्टी। कहीं दिल का चित्र बनाकर दोनों का नाम लिख देता।
दीपक को सहपाठियों की यह हरकत बिल्कुल पसंद नहीं लेकिन क्या करे! लवलीन भी इन हरकतों से दुखी है परन्तु कुछ साथियों के ओछेपन की बिल्कुल परवाह नहीं है उसे।
दिन महीने साल बीत गए। दोनों की दोस्ती गुलाब के फूल की तरह महकने लगी। छोटा -सा कस्बाई शहर दोनों की दोस्ती से कुछ स्थानीय युवकों को अखरने लगी।
लेकिन दोनों पढ़ने लिखने में तेज और छात्रों के बीच लोकप्रिय थे इसीलिए चाह कर भी कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे हैं।
दोनों एक दूसरे को नोट्स का आदान प्रदान करते और लोगों की बातों की परवाह नहीं करते।
एक दिन लवलीन ने दीपक की हिंदी कॉपी लौटाती है जिसे दो दिन पहले ली थी। कॉपी के एक कोने पर थैंक्स लिख देती है।
दीपक की आँखें उस पर जाती है, थैंक्स के नीचे लिख देता है “सिर्फ थैंक्स”?
दूसरी बार जब लवलीन उस कॉपी को नोट्स की नकल करने हेतु लेती है और देखती है तो जवाब में लिख देती है, “थैंक्स नहीं तो क्या चाहिए?”
“करती हो सवाल क्या चाहते हो
खुद हो जवाब जवाब चाहती हो”
दीपक के शायराना अंदाज से लवलीन के दिल का गुलाब खिल जाता है।
— निर्मल कुमार दे