दोहे – बनो जौहरी
समय जौहरी कर रहा, परख समय की नित्य।
समय सदा लगता मुझको, मानो ज्यों आदित्य।।
बनो जौहरी नित करो, बुरे-भले में भेद।
वरना होना तय समझ, निज कश्ती में छेद।।
होता है जो जौहरी, कर लेता पहचान।
हीरे का वह मोलकर, कहलाता गुणवान।।
रखो संग में नित्य ही, प्रियवर आप विवेक।
तभी जौहरी बन सको, काम करो फिर नेक।।
मनुज बन सके जौहरी, यदि वह नित्य सतर्क।
वरना होना तय सदा, उसका बेड़ा गर्क।।
बड़ा बहुत है जौहरी, कहलाता भगवान।
सबका कर के मोल वह, देता है सम्मान।।
बनना चाहो जौहरी, तो करना सद्कर्म।
यही सफलता-राह है, यही सफलता-मर्म।।
सदा जौहरी बन करो, हीरे का तुम मोल।
जीवन में फिर तो कभी, कैसे आये झोल।।
— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे