शोर मचाना जरूरी है
बहरों की नगरी में
शोर मचाना जरूरी है,
देख के भी नजरअंदाज करे तो
नजारे दिखाना जरूरी है,
दया,प्रेम,दुख,क्रोध भरा है
भावनाएं बताना जरूरी है,
कहने से क्यों रहे हो डर,
घुट घुट कर न जाना मर,
कहता है कोई भाई यदि तो
बंधुता बढ़ाना जरूरी है,
गहरे प्रेम का राग है गा रहा,
हिस्सा खुरच खुरच कर खा रहा,
झूठा लगाव दिखा रहा,
दिल ही दिल गाली सुना रहा,
तो कहो क्यों दुश्मनी अधूरी है,
हमें भी आगे बढ़ाते नहीं,
सीने से भी लगाते नहीं,
समरसता का बस ढोल पीटकर
एक थाली में क्यों खाते नहीं,
शत्रु हमें तुम मान रहे हो,
हसरत हमारी जान रहे हो,
सब कुछ हम ही लुटाये क्यों,
राजा तुम्हें ही बनाये क्यों,
मानते रहे लिखा तुम्हारे ही
अपना नियम न चलाएं क्यों,
भाईचारे पर ही अटकाए हुए हो
बंधु बनाने में क्या मजबूरी है,
पार हो चुकी सारी हदें अब
कौन चोर बताना जरूरी है,
बहरों की नगरी में
शोर मचाना जरूरी है।
— राजेन्द्र लाहिरी