कविता
निःशुल्क मिली थी जो चीजें प्रकृति से उपहार में
स्वच्छ हवा, पीने का पानी सबके ही था अधिकार में
इन सब की भी कीमत अब भरते है
नए दौर में साहब इसको ही तरक्की कहते हैं
दुवार, आंगन, दलान, ओसारा
बच्चो को मालूम नही किसको कहते हैं
छोटे छोटे पिजरो जैसे घर में अब रहते हैं
नए दौर में साहब इसको ही तरक्की कहते हैं
नीम की दातुन , नमक तेल से मंजन
भूल गए हैं सब सिर में तेल,आंखो में अंजन
शैंपू में है मिल्क प्रोटीन टूथ पेस्ट में नमक विज्ञापन कहते हैं
नए दौर में साहब इसको ही तरक्की कहते हैं
पहले होते थे शिक्षक, गुरु गोविंद सरीखे
अब उनको बस टीचर, मेंटर कहते हैं
किसी भी समस्या का हल बस गुगल गुरु जी करते हैं
नए दौर में साहब इसको ही तरक्की कहते हैं
खेल कूद से नाता टूटा , कसरत , व्यायाम सब बंद हुआ
अब मोबाइल पर गेम और ट्रेडमिल पर दौड़ा करते हैं
आंखो पर चश्मा आया बच्चे बीपी शुगर चेक करते हैं
नए दौर में साहब इसको ही तरक्की कहते हैं
50 के पार जब पारा हो एसी भी फुंक जाते हैं
पेड़ काट के अब गमलों में मनी प्लांट लगाते हैं
फेसबुक और इंस्टा पर हम नेचर प्रेम दिखाते हैं
नए दौर में साहब इसको ही तरक्की कहते हैं
— प्रज्ञा पांडेय मनु