ग़ज़ल
देखकर रुख़ निबाह में क्या है
झूठ की आह-वाह में क्या है
लोग भी दे रहे मुझे क्या-क्या
यार ख़ाली सलाह में क्या है
और ज़्यादा ख़राब हालत तो
फिर किसी की पनाह में क्या है
जब उदासीनता दिखाए इक
दूसरे के उछाह में क्या है
बस भटकते इधर-उधर रहिए
जब नहीं लक्ष्य राह में क्या है
ज़ालिमों ने डुबो दिया तुमको
अब भला आत्मदाह में क्या है
फूल अद्भुत खिला हुआ पीला
संगदिल चाँद चाह में क्या है
— केशव शरण