ये जनवरी की रात है
जान लेकर जाएगी,
ये जनवरी की रात है।
बच गए तो इतना ही मानो,
किस्मत तुझपे मेहरबान है।
इस कपकपाती ठंड में,
आपकी बुरी जो हाल है।
सच पूछो तो आप ही,
इसके लिए जिम्मेदार हैं।
घर लुटा, उपज लुटा,
लुट गई सब कमाई है।
पर खामोश आप बैठे रहे,
किया न कोई प्रतिकार है।
वो आपके उत्पाद से,
लिपटा मखमली रजाई में है।
और आप ठंड से तरप रहे,
पतली कंबल है, सात छेद है।
पुआल जला गरमा गए,
आई अब गहरी नींद है।
पर पछुआ हवा चली,
लो खुल गई अब नैन है।
दांत कटकटा रहा,
थरथरा रहा सारा बदन है।
कटे आज की रात मेरी,
ले रहा भगवान का नाम है।
— अमरेन्द्र