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सर्दहवाएं


       यूं तो सर्दियों के मौसम में जब  सूर्य की पृथ्वी से दूरी बढ़ जाती है, तब  ठंडी और बर्फीली हवाएं चलती हैं।
       हमारा देश धार्मिक आध्यात्मिक मान्यताओं वाला है, विज्ञान के बढ़ते कदमों के बीच भी हम आज भी धर्म, शास्त्र, नक्षत्रों को नजरंदाज नहीं कर रहे हैं और न ही इसकी संभावना है। नक्षत्रों और राशियों के अध्ययन से प्राप्त पुरातन निष्कर्षों के अनुसार जब मृगशिरा नक्षत्र में सूर्य की स्थिति मिथुन राशि पर होती है तब यह ऋतु चक्र प्रारंभ होकर शिशिर बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद और क्रमशः हेमंत ऋतु आती है।
        वैज्ञानिक अवधारणा है कि गर्म हवा ठंडी हवा की अपेक्षा हल्की होती है जो ऊपर उठने के साथ और फैलती है। जिसकी जगह लेने के लिए ठंडी हवा आ जाने से ठंडी / सर्द हवाएँ चलती है ।सामान्यतया ठंडी या सर्द हवाएँ, जो पृथ्वी की सतह से ऊपर उठती हैं और जिनका तापमान कम होता है। ये हवाएं ही अक्सर ठंड का कारण और कभी-कभी बर्फबारी का कारण भी होती है।
      शायद कम लोगों को पता होगा कि ये धूल भरी हवाएँ होती हैं, जिनका तापमान हिमांक बिंदु से नीचे होता है, जिससे शीत लहर की स्थितियां बनती हैं। ठंडी स्थानीय हवाओं के उदाहरणों में भारतीय बोलियों में सर्द हवाओं के नाम मिस्ट्रल, बोरा, नॉर्थर्स, बर्फ़ीला तूफ़ान, पुर्गा, लैवेंडर, पैम्पेरो, बिसे आदि शामिल हैं।
      शिशिर ऋतु में सामान्यतः दिसंबर जनवरी माह में कंप कंपा देने वाली ठंड के साथ हवाएं चलती हैं, जो किसी शूल की तरह शरीर को भेदती लगती हैं। कड़ाके की ठंड पड़ती है, जिसका असर हर प्राणी के ऊपर पड़ता है, बीमार, वृद्ध और बच्चों पर जहां इसका असर अधिक होता है, वहां रोजमर्रा के काम में लगे मजदूर वर्ग की परेशानी बढ़ जाती है, पटरी दुकानदारों, फेरी वालों, और विभिन्न तरह के सफर की विवशता वाले लोगों की दुश्वारियां उनकी विवशताएं का मजाक उड़ाती हैं,  तमाम तरह की बीमारियों से बीमार होने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगती है।
  शीतलहर, बर्फबारी का प्रकोप भी हावी होने लगता है, ऊपर जब हवाएं भी अपने रंग दिखाने लगती हैं तब ठंड के साथ गलने भी बढ़ जाती है। ऐसे में कभी कभी तो धूप कभी निकलती है तो कभी नहीं, और कभी कभी तो कई कई दिनों तक सूर्यदेव के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। ठंड से बचने के लिए तमाम तरह के उपाय अपनाए जाते हैं, जिसके चलते भी कई बार जन धन की हानि भी हो जाती है।
     पूस और माघ का मध्य में किसान को खेतों में पानी देने और दिन हो या रात में नहर, ट्यूबवेल के पानी से खेतों में पानी लगाना किसी कठिन तपस्या से कम नहीं  है। लेकिन इस सीजन की फसलों के लिए शीत ऋतु का अपना विशेष महत्व भी है ।
    वैसे तो हम चाहे जितना उपाय कर लें, परंतु सर्द हवाओं के चलते लोगों का जीना दूभर हो ही जाता है। सबसे ज्यादा असर गरीब, कमजोर और उन लोगों के ऊपर पड़ता है जिनके पास सिर छुपाने की जगह नहीं होती और वे तमाम तरह के जुगाड़ करके अपने को सुरक्षित रखने का यत्न करने में लगे रहते हैं ऊपर से पेट भरने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।   
(विभिन्न स्रोतों से साभार)

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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