कुंडलियां
देखा देखी क्यों करे, हो मन की ही बात।
सोचे समझे फिर करे, करे न कोई घात।।
करे न कोई घात, ध्यान से राही चलना।
कंकड से हो घाव, शूल से बचके रहना।।
मर्यादा, सम्मान, शील की लक्ष्मण रेखा।
ज्ञानी हो विद्वान, स्वार्थ वश लुटते देखा।।
देखा देखी क्यों करे, हो मन की ही बात।
सोचे समझे फिर करे, करे न कोई घात।।
करे न कोई घात, ध्यान से राही चलना।
कंकड से हो घाव, शूल से बचके रहना।।
मर्यादा, सम्मान, शील की लक्ष्मण रेखा।
ज्ञानी हो विद्वान, स्वार्थ वश लुटते देखा।।