कुण्डली/छंद

कुंडलियां 

देखा देखी क्यों करे, हो मन की ही बात।

सोचे समझे फिर करे, करे न कोई घात।।

करे न कोई घात, ध्यान से राही चलना।

कंकड से हो घाव, शूल से बचके रहना।।

मर्यादा, सम्मान, शील की लक्ष्मण रेखा।

ज्ञानी हो विद्वान, स्वार्थ वश लुटते देखा।। 

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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