लिख देना तुम
कभी जो भर जाएं आंखें,
हाल दिल का लिख देना तुम।
कभी जो कहने को हो बहुत,
तुम कह न पाओ वो सब कुछ।
कलम से बस लिख देना तुम।
ऐसे भी मन हल्का होता है,
उल्झनों से मन परे होता है।
न बोझ लेना मन में कुछ भी,
बेजिझक कह देना सब कहीं।
हाँ.. बेफिक्र बस लिख देना तुम।
सहते बहुत हैं कभी कहते कम,
खामोश हो बस हालात देखें हम।
क्यों कभी कुछ शब्द मोन कर देते;
घाव दिलों के न मरहम से भरते।
कर हिम्मत सब लिख देना तुम।
इक नन्हीं कलम करती कमाल,
सहज ही चलती लिखती हाल।
वक्त न देखे न देखे ये दिन रात,
लिखती कही अनकही हर बात।
यूँ ही जब भर आए मन ….
उठा कलम बस लिख देना तुम।
सब लिख देना तुम।
— कामनी गुप्ता