भाषा-साहित्य

इतिहास के पन्नों को पलटने से हमें हिंदी भाषा के विकास की एक स्पष्ट तस्वीर मिलती है

हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए। मातृभाषा हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, और हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यहाँ कुछ कारण हैं कि हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व क्यों होना चाहिए?
मातृभाषा हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह हमारे समाज की परंपराओं, रीति-रिवाजों और मूल्यों को दर्शाती है।
मातृभाषा हमारी पहचान का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हमें हमारे समाज और संस्कृति से जोड़ती है।
मातृभाषा हमारे समाज को एकजुट करने में मदद करती है। यह हमें एक दूसरे से जोड़ती है और हमारे समाज को मजबूत बनाती है।
मातृभाषा हमारी भाषाई विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें अपनी भाषा और संस्कृति की विविधता को समझने और सम्मान करने में मदद करती है।
मातृभाषा हमारे राष्ट्रीय गौरव का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें हमारे देश और संस्कृति के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को जगाती है।
इसलिए, हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए और उसे सम्मान और प्यार के साथ संरक्षित करना चाहिए।हिंदी दिवस के अवसर पर हमें अपनी मातृभाषा के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को जगाना चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि हम अक्सर अपनी मातृभाषा को कम महत्व देते हैं और अंग्रेजी भाषा को अधिक महत्व देते हैं।
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि हम अपनी मातृभाषा को अपने दैनिक जीवन में कम उपयोग करते हैं, यह हमारी संस्कृति और पहचान के लिए खतरनाक हो सकता है।
सिर्फ एक दिन हिंदी दिवस मनाने से हम अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं हो जाते हैं। हमें अपनी मातृभाषा के प्रति नियमित रूप से प्रयास करना चाहिए और उसे अपने दैनिक जीवन में अधिक महत्व देना चाहिए।
इसलिए, हमें अपनी मातृभाषा के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को जगाने के लिए नियमित रूप से प्रयास करना चाहिए।
हिंदी भाषा को बढ़ावा देने और उसके प्रति गर्व और सम्मान की भावना को जगाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति, समाज, और शासन-प्रशासन की भागीदारी आवश्यक है।
व्यक्तिगत स्तर पर,
अपने दैनिक जीवन में हिंदी भाषा का उपयोग करना।
हिंदी साहित्य का अध्ययन करना और उसे बढ़ावा देना।
हिंदी भाषा का प्रचार करना और उसके प्रति जागरूकता बढ़ाना।
समाजिक स्तर पर,
हिंदी भाषा के कार्यक्रम आयोजित करना।
हिंदी साहित्य के सेमिनार आयोजित करना।
हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना।
शासन-प्रशासनिक स्तर पर,
हिंदी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाना।
हिंदी भाषा के शिक्षण को बढ़ावा देना।
हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना।
इन तरीकों से, हम हिंदी भाषा को बढ़ावा दे सकते हैं और उसके प्रति गर्व और सम्मान की भावना को जगा सकते हैं।
इतिहास के पन्नों को पलटने से हमें हिंदी भाषा के विकास की एक स्पष्ट तस्वीर मिलती है। हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना जाता है, जो कि सामान्यतः,प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से शुरू होता है।
हिंदी भाषा के विकास को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है,आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल। आदिकाल में हिंदी भाषा अपने अपभ्रंश के निकट थी, लेकिन समय के साथ इसमें परिवर्तन आया और यह अपने स्वतंत्र और सशक्त रूप में खड़ी हो गई।
मध्यकाल में हिंदी भाषा में फारसी और अरबी शब्दों का प्रयोग बढ़ गया, जो कि मुगल शासन के दौरान हुआ। आधुनिक काल में हिंदी भाषा में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग बढ़ गया, जो कि अंग्रेजों के शासन के दौरान हुआ।
इतिहास के पन्नों को पलटने से हमें यह भी पता चलता है कि हिंदी भाषा ने कैसे अपने आप को विकसित किया और कैसे यह भारत की राजभाषा बन गई।

— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- [email protected] , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,

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