थामे रहना स्नेहिल डोर
लिख दो दोस्ती के नाम,
सुंदर सा एक पैगाम।।
भेद न कोई मन में रखे,
मित्रता ऊँच-नीच न देखे।।
मित्रता कृष्ण सुदामा सी,
प्रीती झर झर झरने सी।।
रुमझुम दिल के तार बजे,
मित्र पुकार से मन बाग सजे।।
विपदा में साथी हाथ धरे,
अपनेपन का एहसास भरे।।
छाँव भी छोड़ दे जब साथ,
सखा बनता शीतल ठाँव।।
थामे रहना स्नेहिल डोर,
मनभावन सुहानी भोर।।