और पोल खुल गई!
“अनूप तुम तो बहुत होशियार हो, आज मैं शाम को 5 बजे तुम्हारे घर तुमसे कुछ सवाल सीखने आऊंगा.” विनीत ने कहा.
“पर उस समय तो मेरा पॉर्क में खेलने का टाइम होता है!”
“अरे यार, तुझे कहानी की किताबें पढ़ने का शौक है न! मैं कुछ कहानी की किताबें ले आऊंगा तू पढ़ लेना, मैं तेरी गणित की होम वर्क कॉपी से देखकर सवाल हल करना सीख जाऊंगा.” अपने नाम के विपरीत विनीत ने चारा डाला.
भोला-भाला अनूप उसके झांसे में आ गया और स्वीकृति दे दी.
शाम को जब वे ऐसा कर रहे थे कि अनूप की मम्मी ऑफिस से आ गईं और इस नजारे को चुपके-से उन्होंने अपने मोबाइल में कैद कर लिया.
दूसरे दिन जब गणित के अध्यापक ने सबकी कॉपियां चेक कीं तो विनीत की कॉपी देखकर हैरान हो गए!
“विनीत बेटे, आज तो आपने सारे सवाल सही-सही हल कर लिए हैं, ये कैसे हुआ!”
“सर…” विनीत खड़ा होकर कुछ कहना चाहता था.
तभी सर के मोबाइल पर खट की आवाज हुई, उन्होंने एक झलक मारी तो सारा माजरा समझ में आ गया.
“अनूप, आप कैसे इस बगुला भगत के झांसे में आ गए!” सर ने अनूप की मम्मी का फोटो दिखाते हुए कहा.
अनूप को काटो तो खून नहीं! वह सर झुकाकर खड़ा हो गया.
“बेटे सर झुकाकर तो विनीत को खड़ा होना चाहिए! तुम पढ़ने में बहुत होशियार हो, बस थोड़ा-सा दुनियादारी के व्यवहार में भी होशियार हो जाओ.” सर ने उसको पास बुलाकर उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा.
अब विनीत सचमुच सर झुकाकर खड़ा था, उसकी पोल जो खुल गई थी!
— लीला तिवानी