गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दे दिखाई न दूसरा कोई
ठंड से काँपता हुआ कोई

और किस रोज़ धूप निकलेगी
तापता आग पूछता कोई

फूल कुम्हला गए खिले सारे
पर नया भी नहीं खिला कोई

देखता क्या चमक रहा सूरज
धुंध के पार देखता कोई

इस गलन में लिए गरम कम्बल
आ रहा कौन देवता कोई

कब दया की नज़र इधर होगी
ठंड से पशु ठिठुर रहा कोई

कब सज़ा में समय बदल जाए
ले रहा था अभी मज़ा कोई

— केशव शरण

केशव शरण

वाराणसी 9415295137