कविता

परंपरा के दो वाहक

जैसे ही फोन से खबर मिली
घर में कोहराम मच गया,
मां बाप का सीना फट गया,
गांव के सारे लोग
उस परिवार की ओर गर्व से देख रहे थे,
मगर उस घर के लोगों की आंखें
दुख,विरह,इकलौता बेटा और
देश के लिए शहीद सोच आंसू फेंक रहे थे,
नेताजी आया,
पुष्प माला चढ़ाया,
गर्व लायक जवान बताया,
जाते जाते शहीद की जयकारा लगाया,
पत्नी ने बेटे को फौज में भेजने की बात की,
परिवार की परंपरा सहेजने की बात की,
अब मेरा बेटा भी सेना में सेवा देगा,
अपने पिता का बदला लेगा,
नेता जी जैसे ही चुनाव जीत आया,
जनता की सेवा करने का मिला अवसर बताया,
बहुत साल सेवा देकर बहुत मेवा खाया,
सात पुश्तों को बैठकर खाने लायक
तमाम सुख सुविधा और पैसा कमाया,
फिर बेटे को नेता बनाया,
जोड़तोड़ कर उसे भी जीताया,
इस तरह से देश के दो परिवार
बने हुए हैं अपनी परंपरा के वाहक,
लोग जो सोचना है सोचे
मैं अपना मुंह क्यों खोलूं नाहक।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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