कविता

शुभ भावना 

इतराते रहें हम,

इठलाते रहें हम,

अपने आप को,

सर्वश्रेष्ठ समझते रहें हम।  

माना हमने,

हम-सा न कोई दूजा,

न कभी होगा दूजा। 

भूल गए झांकना अंतर्मन में,

भूल गए मन दर्पण झूठ न बोले। 

किया खिलवाड़ मनोहर सृष्टि से,

उध्वस्त किया हरी भरी प्रकृति को। 

रोपे न पेड़ पौधे, सहेजे न वन मंगल,

तोड़े पहाड़, बनाये क्रंकीट जंगल।

कलुषित हुई निर्मल जलधारा,

यहाँ वहां फेंका हमने कूड़ा कचरा। 

नादानी इंसान की देखो बढ़ती जाये,

आधुनिकता के आड़ में विनाशलीला रचाये। 

ऐ मानव, विकास पथपर बढ़ो सदा,

अनमोल हैं मानव जीवन, सार्थक हो सर्वदा।

जीव दया, करुणा,

मानवता हो मन में,

जियो और जीने दो,

कल्याणी शुभ भावना जीवन में।  

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*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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