शुभ भावना
इतराते रहें हम,
इठलाते रहें हम,
अपने आप को,
सर्वश्रेष्ठ समझते रहें हम।
माना हमने,
हम-सा न कोई दूजा,
न कभी होगा दूजा।
भूल गए झांकना अंतर्मन में,
भूल गए मन दर्पण झूठ न बोले।
किया खिलवाड़ मनोहर सृष्टि से,
उध्वस्त किया हरी भरी प्रकृति को।
रोपे न पेड़ पौधे, सहेजे न वन मंगल,
तोड़े पहाड़, बनाये क्रंकीट जंगल।
कलुषित हुई निर्मल जलधारा,
यहाँ वहां फेंका हमने कूड़ा कचरा।
नादानी इंसान की देखो बढ़ती जाये,
आधुनिकता के आड़ में विनाशलीला रचाये।
ऐ मानव, विकास पथपर बढ़ो सदा,
अनमोल हैं मानव जीवन, सार्थक हो सर्वदा।
जीव दया, करुणा,
मानवता हो मन में,
जियो और जीने दो,
कल्याणी शुभ भावना जीवन में।
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