मैं यूं ही कविताएं
मैं यूं ही कविताएं रचती जाऊंगी,
“आनंद” भाव हर मन में जगाऊंगी,
सरल,सहज शब्दों की माला बना कर,
प्रेम भाव जन-जन तक पहुंचाऊंगी ।
मैं यूं ही कविताएं रचती जाऊंगी,
भारतीय संस्कृति विश्व में फैलाऊंगी,
आगामी पीढ़ी में ज्ञान अभ्युदय कर,
अपनी सभ्यता को अपनाना बताऊंगी ।
मैं यूं ही कविताएं रचती जाऊंगी,
सत्य प्रकाश हर दिशा में बिखराऊंगी,
निराश मन में प्राणों का प्रवाह कर,
दिव्य आत्मविश्वास की ज्योति जलाऊंगी ।
मैं यूं ही कविताएं रचती जाऊंगी,
सौहार्द,सात्विकता को आगे बढ़ाऊंगी,
एकता की शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति संभव कर,
विश्व बंधुत्व का बिगुल मिलकर बजाऊंगी ।
मैं यूं ही कविताएं रचती जाऊंगी,
ईश पर दृढ़ विश्वास रखना समझाऊंगी,
अन्तर्मन की उलझनों को सुलझा कर,
परमानंद प्राप्ति का अनुभव करवाऊंगी ।
मैं यूं ही कविताएं रचती जाऊंगी,
गुरु पदचिन्हों पर नित बढ़तीं जाऊंगी,
ईश को सर्वस्व चित्त मन अर्पण कर,
जीवन साध आखिरी गंतव्य निश्चित पाऊंगी ।
— मोनिका डागा “आनंद”