तीर्थराज प्रयाग
जीवन धर्म की रक्षा हेतु लगी पूर्ण महाकुंभ में भीड़,
दुनिया उमड़ पड़ी सारी हे तीर्थराज प्रयाग हरो पीड़,
दुःख दर्द, व्याधियां सता रही सुख रहित हुआ नीड़,
आंतरिक शांति खो गई चैतन्य करो सुख का सीड़ ।
डुबकी लगाओ संगम में सुनहरा मौका तारने आया,
शुद्ध हो तन मन प्रभु ने “आनंद” अमृत ये बरसाया,
सनातन संस्कृति का जयघोष सम्पूर्ण विश्व में छाया,
विदेशी रंगे भगवा रंग में छोड़ सांसारिक धन माया ।
कल्पवास का कठिन प्रण लें योगीजन साधना करें,
भाग्यशाली वे गंगा तीरे माघ मास महात्म गान करें,
बाह्य मायावी दुनिया के मोह जंजाल से होके यूं परे,
भीतर अलौकिक ज्योति पुंज की दिव्य साधना करें ।
परम पूजनीय है साधु-संत ऋषि, सिद्धांत्मा तपस्वी,
महान भारतवर्ष, महान है सनातन धर्म मुनि मनस्वी,
दीर्घायु आरोग्यता शांति पुण्यात्मा बनो हे जनस्वी,
योग तप साधना से विकार मुक्त, हो जाओ यशस्वी ।
आस्था दृढ़ विश्वास से ईश्वर का करों स्मरण ध्यान,
तीर्थ की परम पवित्रता से सुखमय हो जीवन त्राण,
जिसने पाया अद्वितीय सुख खिले यूं “आनंद” प्राण,
राम नाम से मोम बन पिघल जाते दुख रूपी पाषाण ।
— मोनिका डागा “आनंद”