ग़ज़ल
जब कभी परछाई का कद आपके कद से बड़ा हो
आदमी को चाहिए कि जाकर अंधेरे में खड़ा हो
पान का बीड़ा सदा सम्मान का सूचक रहा है
कर ग्रहण यह मानकर शायद जहर इसमें पड़ा हो
नाग के से पास का आभास तो देगा सदा ही
वह दुशाला जो अनादर से मिला माणिक जड़ा हो
हार तो उसकी विजय से भी कहीं ज्यादा सुखद है
जो प्रबलतम शत्रु से सम्मान की खातिर लड़ा हो
कर्ण बनाकर त्याग दे रक्षा कवच कुंडल अलौकिक
जब स्वयं ही इंद्र बन याचक तेरे द्वारे खड़ा हो
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव