कर्मों से बढ़कर कोई नहीं…….।
एक राजा की चार रानियाँ थीं। वह उन सभी के साथ हँसी-खुषी अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया और मृत्युशैया पर पहुँच गया। मौत को अपने पास देखकर उसे बहुत दुःख हुआ और लाइलाज बीमारी से अकेलापन भी महसूस करने लगा। तब उसके दिमाग में एक युक्ति आई कि क्यों न अपनी सभी रानियों की परीक्षा ली जाएँ। यही सोच कर अपनी पहली रानी, जिसे वह बहुत प्रेम करता था, उसको अपने पास बुलाया और उससे बोला- ‘‘प्रिये! मेरे मरने के बाद क्या तुम मेरे साथ दूसरी दुनिया में चलोगी?’’ राजा की यह बात सुनकर रानी को बहुत आष्चर्य हुआ। लेकिन बहुत सोच-विचार कर उसने जवाब दिया- ‘‘आपने मुझे हमेशा सबसे ज्यादा प्यार दिया है, पर अब हमारे अलग होने का समय आ गया है। इसलिए मैं आपके साथ नहीं चल सकती, इसका मुझें खेद हैं।’’ पहली रानी का ऐसा जवाब सुनकर राजा ने अपनी दूसरी रानी को बुलाकर उसे अपने साथ चलने का आग्रह किया।’’ राजा की ऐसी मनसा को जानकर दूसरी रानी ने बहुत ही रूखे स्वर में कहा- ‘‘जब आपकी पहली रानी ने साथ में चलने के लिए ही मना कर दिया, तो मैं क्यों चलूँ?’’ फिर उसने अपनी तीसरी रानी को बुलाकर उससे भी यही पूछा। तीसरी रानी ने अपनी आँखों में आँसू भरकर कहा- ‘‘मैं बहुत दुःखी हूँ यह जानकर और आपसे पूरी सहानुभूति भी रखती हूँ। ज्यादा-से-ज्यादा मैं आपके साथ केवल श्मशान भूमि तक ही चल सकती हूँ और यही मेरा अंतिम कर्त्तव्य है।’’ अपनी तीनों रानियों का जवाब सुनकर वह बहुत दुःखी हुआ और अंत में उसने अपनी चौथी रानी को अपने पास बुलाया। उस रानी को न तो कभी उसने प्यार किया और न कभी उसकी परवाह की। उसे हमेषा उपेक्षित ही किया। चौथी रानी से तो उसे पक्की उम्मीद थी कि वह साथ चलने के लिए मना ही करेेगी, लेकिन चौथी रानी ने उसे ढ़ाढस बंधवाते हुए कहा कि- ‘‘मेरे प्रिय! मैं आपके साथ जरूर चलूंगी। मैंने आपके साथ सात फेरें लिए हैं। मैं हमेषा अन्तिम समय तक आपके साथ रहने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हूँ।’’ ज्ञानी पुरुष इस कहानी का सार इन चार बातों से हमें समझाते हैं। जो इस प्रकार हैंः- 1. पहली रानी है हमारा शरीर, जिसे हम बहुत प्यार करते हैं, लेकिन मृत्यु के बाद यह यहीं नष्ट हो जाता है। 2. दूसरी रानी है हमारी धन-संपत्ति और पद-प्रतिष्ठा, जो यहीं रह जाते हैं। 3. तीसरी रानी है हमारे सांसारिक रिश्ते, जो अन्तिम समय में केवल श्मशान तक ही साथ आते हैं। 4. चौथी रानी है हमारे कर्म, जो आगे की यात्रा में हमारे साथ जाते हैं और हमारे भविष्य का निर्धारण करते हैं। मित्रों! इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण होते है हमारे कर्म। जो हमारे अन्तिम समय के बाद भी हमारे साथ चलते हैं। धन, सम्पत्ति, शरीर और रिश्ते एक जीवन तक ही सीमित रहते हैं। प्रतिदिन हम सभी से जाने-अनजाने में या भूलवष कुछ न कुछ गलतियाँ या हिंसा हो जाती है। इन सभी से हमारे न जाने कई छोटे-बड़े कर्म बंधते ही रहते हैं। हमें विवेकपूर्वक एवं यतनापूर्वक अपना जीवनयापन करना चाहिए। इसलिए अच्छे कर्मों को सदैव प्राथमिकता देनी चाहिए।
— राजीव नेपालिया (माथुर)