मुक्तक/दोहा

कहें सुधीर कविराय

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राम नाम

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राम नाम के मर्म को, जो भी लेता जान।।

पढ़ना उसको फिर नहीं, जीवन का विज्ञान।।

सुंदर मोहक लग रहा, आज अयोध्या धाम।

धाम राम जन आ रहे, छोड़-छाड़ सब काम।।

कहते  जिनको  हम  सभी, मर्यादा  के  राम।

राम-नाम में छिपा है छिपा, जन मानस का धाम।।

राम कथा में  राम  हैं, भक्तों  में  हनुमान।

हनुमत जब हों ध्यान में, तभी राम दें मान।।

गये अयोध्या धाम हम, दरश मिला प्रभु राम।

राम कृपा  ऐसी  रही, सहज हुए सब काम।। 

भरत राम के हैं प्रिये, बसे  हृदय  हैं  राम।

कौन भरत या राम सा, संग श्रेष्ठ आयाम।।

कैकेई  का  राम  ने, दिया भला  कब  दोष।

किसको दोषी मान लें,सब नियती का रोष।।

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धार्मिक 

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चित्र गुप्त रखते सदा, सब कर्मों का लेख।

लेख कर्म उनके कभी, आप लीजिए देख।।

भगवन  तुम  लेना  नहीं ,अभी धरा अवतार।

शायद सहना भी पड़े , जन मन का  प्रतिकार।।

लेना जब अवतार है, तो ले लो फिर आज।

देरी से बस आपका, और  बढ़ेगा  काज।।

मठ मंदिर में नित्य ही, होता पूजा  पाठ।

जिनकी जैसी भावना, उसका वैसे ठाठ।।

हर  जन-मन  को  चाहिए, करे  ईश  गुणगान।

सुख-दुख में धारण करे, केवल उनका ध्यान।।

यहाँ वहाँ  के फेर  में, कहाँ  भटकते  आप।

राम नाम के जाप से, मिट जाता हर पाप।।

कल्कि  के अवतरण का, समय बहुत है पास।

जैसे कल ही आ रहे, शिव  सँदेश  है  खास।। 

माना हमने राम जी, धीर  वीर  गंभीर।

भोले शंकर लग रहे, जैसे बड़े अधीर।।

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जन्मदिन 

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जन्म दिवस पर आपके, दूँ आशीष हजार।

दिवस आज आता रहे, बार-बार सौ बार।।

जन्म दिवस ये आपका, लगता सबसे खास।

खुशियों की बरसात का, हमको है विश्वास।।

जन्म दिवस आता रहे, रहें आप खुशहाल।

और सदा होता रहे, ऊँचा  आपका  भाल।।

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नववर्ष 

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नये वर्ष आरंभ का, स्वागत करिए आप।

मर्यादा में हम रहें, और करें प्रभु जाप।।

स्वागत वंदन कीजिए, नये वर्ष का आप।

आप  संग  संसार  का, दूर  रहे  संताप।।

हर पल नव आरंभ हैं, जिसको इसका ज्ञान।

इसे  नहीं  जो  जानते, गाएँ  बेसुरा  गान।।

आप सभी  अब  रोपिए, नया  वर्ष  नव  फूल।

सुख-दुख जैसा भी रहा, तुम सब जाना भूल।।

नये साल की आड़ में, होता क्या क्या खेल।। 

नहीं पता क्या आपको, कहाँ  कहाँ  है  मेल।

गुजर गया ये साल भी, धीरे से चुपचाप।

आने वाले वर्ष में, देंगे  सब  नव  थाप।।

गुजर  गया  ये  साल  भी, धीरे  से  चुपचाप।

मिश्रित अनुभव है रहा, कटु अनुभव की छाप।।

हर आहट देती सदा, नव नूतन संदेश।

पढ़ लेता है जो इसे, होता वही विशेष।।

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माता पिता 

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मातु पिता का जो करे, नित प्रति प्यार दुलार।

खुशियों  से  होता  भरा, चाहे  जो  भी  वार।।

मात पिता को अश्रु दे, जी भर मौज उड़ाय।

पाते  ऐसा  दंड  वो,  कोई  नहीं  सहाय।।

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प्रदूषण 

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हरियाली के नाश का, है प्रतिकूल प्रभाव।

यदि  ऐसा  होता  रहा, सड़ता  जाए घाव।।

उछल कूद जो हम करें, सब श्वाँसों का खेल।

बिना श्वाँस होगी दशा, बिन  इंजन जस  रेल।।

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विविध 

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तकनीकी  संसार में, तैर  रहे  हैं  लोग।

यह कोई संयोग है, अथवा कोई रोग।।

आव भगत करिए सदा, जो आये घर द्वार।

ईश्वर भी तब ही सदा, करते  बाधा  पार।।

मेल-जोल  विस्तार  को, बढ़ा  रहे  जो आप।

सोच समझ से चूकते, बन जाता अभिशाप।।

मातु शारदे  की  कृपा, सदा  रहे  दिन  रात।

गीत गजल की आपके, जमकर हो बरसात।

दोहा  पहला‌  पाठ  है, कहते  छंदाचार्य।

दोहा सीखे भी बिना , नहीं बनेगा कार्य।।

नियमों का पालन करें, मूरख हैं वे लोग।

नहीं समझ वे पा रहे, पाले  कैसा  रोग।।

स्वागत वंदन संग में, रखो हृदय मृदु भाव।

भाव भावना पाक हो, नहीं  कुरेदें  घाव।।

अभी न जाना आपने, मेरा असली रंग।

जानोगे जब भेद ये, रह  जाओगे  दंग।।

नजर आप को आ रहा, नफ़रत चारों ओर।

नहीं  सुनाई  दे  रहा, राम  नाम  का  शोर।।

बाहर भीतर भेद क्यों, रखते हो  तुम  यार।

खुलेगा इक दिन भेद ये, रोओगे जार- जार।।

बड़ा सरल है आजकल, कहना खुद को श्रेष्ठ।

हर  कोई  कहता  फिरे, मैं  ही  सबसे  ज्येष्ठ।।

कहलाते अज्ञान हैं, सरल आज के लोग।

जो  ऐसा  हैं  सोचते, उनका  है  दुर्योग।।

कठिन राह होती सरल, संग खड़ा परिवार।

जीवन  में  सबसे  बड़ा, ये  होता  आधार।।

संभल में दंगा हुआ, शिव इच्छा लो मान।

आगे  आगे  देखना, होगा  जो  उत्थान।।

बस इतनी करिए कृपा, बनें गुरू मम आप।

जल्दी से हाँ कीजिए, सौंपू  अपने  पाप।।

भागा भागा वो फिरे, नहीं पा रहा ठौर।

जान सका न रहस्य ये, कैसा आया दौर।।

अभी न जाना आपने, मेरा जानोगे जब भेद ये, रह  जाओगे  दंग।।                                                      

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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