खारा आंसू पी लेते हैं
प्यास तो थी मीठी दरिया की पर खारा आंसू पी लेते हैं
कठिन बहुत है जीना तुम बिन फिर भी जैसे तैसे जी लेते हैं
दौलत वाले क्या जाने हम मिडिल क्लास के लोगों को
आने वाले कल की खुशियां सोच के बस आज ही खुश हो लेते हैं
ज्यादा तो कभी मिला नही फिर भी उसका गिला नहीं
हम रूखी सूखी खा कर भी बड़े चैन से सो लेते हैं
गंगा जाऊ कुंभ नहाऊ ऐसे अपने हालात नही है
अपने ही मन के सागर में डूब कर हम बस निर्मल हो लेते हैं
छोटी छोटी खुशियां है लेकिन गम अपने बड़े बड़े है
टूटे नहीं हम संघर्षों से आज भी जस के तस खड़े है
खुद्दारी अपनी सबसे प्यारी किसी के रहमो करम की ना आदत है
जिसने बोल दिया दो मीठे बोल हम उसके ही हो लेते हैं
— प्रज्ञा पांडेय मनु