राजनीति

गणतंत्र के 76 साल : हमने क्या खोया और क्या पाया

26 जनवरी, 2025 को अपना 76वां गणतंत्र दिवस मनाने के लिए तैयार है, जो अपने देश की स्वतंत्रता और अखंडता के लिए लड़ने वाले असंख्य लोगों के लक्ष्यों, सिद्धांतों और बलिदानों की एक मार्मिक याद दिलाता है। इस लम्बे समय में हमने जो कुछ पाया और खोया है, उसके बारे में परस्पर विरोधी भावनाएं हैं। इस मामले में “क्या खो गया” प्रश्न गलत प्रतीत होता है। क्योंकि जिसने पा लिया वह खो गया। हमारा गणतंत्र और हमारी स्वतंत्रता दोनों ही नये थे। इस प्रकार, हमने इसकी खोज की। स्वाभाविक रूप से, जो को उतना नहीं मिला जितना वह हकदार था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, एक गणतंत्र की स्थापना हुई। इस स्वतंत्रता और गणतंत्र को बचाए रखने की क्षमता सबसे बड़ी उपलब्धि है। पिछले 25 वर्षों से हम लगातार सीमापार छद्म संघर्षों तथा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के बावजूद अपने देश की विविधता और एकता को बनाए रखने में सफल रहे हैं।

भारत को मुख्यतः तीन प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भारतीय समाज की विविधता को ध्यान में रखते हुए भारत को एकजुट करने का रास्ता खोजना पहली और सबसे बड़ी चुनौती थी। आकार और विविधता की दृष्टि से भारत किसी भी महाद्वीप के बराबर था। विविध संस्कृतियों और धर्मों के अलावा, कुछ लोग अलग-अलग बोलियाँ भी बोलते हैं। उस समय लोगों का मानना था कि इतनी विविधता वाला देश लंबे समय तक एकजुट नहीं रह सकता। एक तरह से देश के विभाजन को लेकर लोगों की आशंकाएं सच हो गईं। क्या भारत अपनी एकता बनाये रख पायेगा? क्या यह अन्य लक्ष्यों की अपेक्षा राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता देगा? क्या ऐसी क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहचान को अस्वीकार कर दिया जाएगा? उस समय का सबसे ज्वलंत और पीड़ादायक प्रश्न यह था कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता को कैसे बनाए रखा जाए। इससे देश के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हो गईं। लोकतंत्र को अक्षुण्ण बनाए रखना दूसरी चुनौती थी। भारतीय संविधान के बारे में सभी जानते हैं। जैसा कि आप जानते हैं, संविधान के तहत प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार और मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। भारत ने प्रतिनिधि लोकतंत्र के अंतर्गत संसदीय शासन को अपनाया। इन गुणों से यह सुनिश्चित हो गया कि राजनीतिक चुनाव लोकतांत्रिक वातावरण में होंगे। यद्यपि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक संविधान आवश्यक है, परंतु यह अपर्याप्त है। संविधान के अनुसार लोकतांत्रिक व्यवहार लागू करना एक और चुनौती थी। तीसरी कठिनाई विकास की थी।

गणतंत्र दिवस पर हम आत्मचिंतन करते हैं और सोचते हैं कि हमने क्या खोया और क्या पाया। गणतंत्र दिवस पर हम अपनी उपलब्धियों और असफलताओं का आकलन करते हैं। इसके अलावा, हम भविष्य में आने वाली चुनौतियों और लक्ष्यों पर भी विचार करते हैं। अब समय आ गया है कि हम रुककर सोचें कि वर्षों की इस यात्रा में हमने क्या खोया और क्या पाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत ने अनेक क्षेत्रों में प्रगति की है। भारत ने साहित्य, खेल, कृषि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहित कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। भारत ने अपनी विविध संस्कृति को संरक्षित करते हुए उसे गहरा अर्थ दिया है। भारत विकास में आगे बढ़ गया है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, खेल और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में राष्ट्र ने अपनी पहचान स्थापित की है। इस  विकास यात्रा में नए कीर्तिमान स्थापित हुए हैं। वर्तमान में भारत को एक मजबूत देश माना जाता है। यह इस क्षण में नहीं है। आज विश्व की नजर भारत पर है। देश ने अपने आंतरिक मुद्दों और कठिनाइयों के बावजूद पिछले वर्षों में कुछ ऐसा हासिल किया है जो विश्व को आकर्षक लगता है। ऐसी कुछ बातें हैं जिन पर राष्ट्र को गर्व हो सकता है, और ऐसी कुछ बातें भी हैं जिन पर खेद व्यक्त किया जा सकता है। यदि किसी लोकतांत्रिक देश में सामाजिक-आर्थिक असमानता बनी रहती है, तो यह राजनीतिक समानता को भी निगल जाती है, भले ही औपचारिक और कानूनी राजनीतिक समानता बरकरार रहे। आज का भारत काफी हद तक इसकी पुष्टि करता है। आज हमारा संविधान विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त है। भ्रष्टाचार, बलात्कार, प्रदूषण, जनसंख्या नियंत्रण जैसी अनेक समस्याओं ने भारत माता को रक्तरंजित कर दिया है। आज भी हमारा गणतंत्र कुछ कंटीली झाड़ियों में फंसा हुआ नजर आता है।

युवाओं में असंतोष और क्रोध बढ़ रहा है। उन्हें गलत दिशा में चलने के लिए मजबूर किया जाता है। चुनाव संबंधी भ्रष्टाचार और बल के दुरुपयोग ने इसे विकृत कर दिया है। येन-केन युग के सत्ता संघर्ष ने राजनीति को अवैध बना दिया है। सामाजिक बुराइयों से निपटने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। कुछ स्थानों पर यह चिंताजनक रूप से उभर कर सामने आया है। दलितों के विरुद्ध अत्याचार बढ़ गए हैं, साथ ही जातिगत भेदभाव भी बढ़ गया है। उनकी महिलाओं पर हमले और बलात्कार की घटनाएं बढ़ गयी हैं। प्रांतीयता और जातीयता का जहर अभी भी वातावरण में मौजूद है। लोग खुद को भारतीय कहने के बजाय बंगाली, बिहारी, गुजराती, पंजाबी, तमिल, कन्नड़ आदि के रूप में पहचानते हैं। इसके अलावा वे अलग-अलग जातियों में विभाजित भी दिखाई देते हैं। जातीय सेनाओं की हिंसा चिंताजनक है। कर्ज, भुखमरी, भारी बारिश, बाढ़ और अन्य कारण किसानों को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रहे हैं। विस्थापित लोगों के पास पर्याप्त आवास और रोजगार नहीं है। नक्सलवाद का इतिहास इसका प्रमाण है। आजकल महिलाएं और लड़कियां पहले से कहीं अधिक असुरक्षित हैं तथा बलात्कार की घटनाएं लगातार हो रही हैं। हमारे नेताओं द्वारा की गई खेदजनक टिप्पणियों से हमारा मनोबल और भी गिर गया है। हमारे संविधान के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल सिद्धांत का अभी भी उल्लंघन किया जा रहा है। यह एक चेतावनी संकेत है. हमें पीछे धकेलना चाहिए. इस महत्वपूर्ण अवसर को अब एक परियोजना का रूप देने की आवश्यकता है, क्योंकि हमने इसे अभी केवल संगठनात्मक रूप दिया है।

— डॉ. सत्यवान सौरभ

डॉ. सत्यवान सौरभ

✍ सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989 सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार ईमेल: [email protected] सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381 *अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989 प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन ! प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर संपादन: प्रयास पाक्षिक सम्मान/ अवार्ड: 1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004 2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005 3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006 4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006 5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007 6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008 7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015 8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019 9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020 10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 9466526148 (वार्ता) (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 333,Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa, Hisar-Bhiwani (Haryana)-127045 Contact- 9466526148, 01255281381 facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333 twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh

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