कविता

गीत गणतंत्र का

संविधान में संजोये गए सभी मूलमंत्र का,
चलो सब मिल गाते हैं गीत गणतंत्र का,
न रहा कोई रंक और न रहा कोई राजा,
हर कोई बजाओ मिल प्रजातांत्रिक बाजा,
चुनावी वक्त आया तो चुनने से पहले किसी को,
खूब सोचो समझो और रखो होंठों पे हंसी को,
खोजना है अब सबको आयाम तो विकास के,
बदल जाएंगे फिजां जल्द अपने आसपास के,
जानना ही होगा हमें नियम व अनुच्छेद को,
मिटाना ही पड़ेगा धर्म,जाति-पाती भेद को,
यहां नहीं कोई मालिक वो तो है आम जनता,
लोकतांत्रिक शासन की होती है जान जनता,
गर अपनी जेब भरने को कोई भ्रष्टाचार लाए,
न्यायालय में घसीट उसे सद आचरण सिखाएं,
ध्वज ही फहराने से न होते कर्तव्य पूरा,
नियमों को नहीं मानो तो है सब अधूरा,
अधिकारी हो गर मदारी तो जनता बने जमूरा,
कानून को जो न मानें मानो खाया वो धतूरा,
जनता का,जनता के द्वारा,जनता के लिए,
अधिकार पाने खातिर सभी जख्म है सहे,
नहीं कोई रानी अब किसी राजा को जनेंगे,
सब मिल जुल निष्पक्ष हो प्रतिनिधि चुनेंगे,
दिन अठारह,महीने ग्यारह और पूरे दो साल,
हम लायक न बन पाये तो सदा पूछेंगे सवाल,
एक सौ सड़सठ दिन की बैठक और ग्यारह सत्र,
महक फैला रहा संविधान देश दुनिया में सर्वत्र।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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