कविता

प्रातः वंदन

सूरज की किरणे आंखे खोल
मंद मंद मुस्कुरा रही
सुंदर जगत के आगमन से
मन प्रफुल्लित हो उठा गगन
भैरों भी फूलों से लिपटे
पक्षी भी खूब कलवर करते
मंद हवाएं शीतल बहती
मानव को आगाध कराती।
खेतों की हरियाली देखो
हरे घास पर मोती बिखरा
मानो सबका मन हर लेता
सूरज की किरणे आंखे खोले।
जग भी सुंदर मन भी सुंदर
कोमल कृत धागों में बंधकर
सुंदर जग की छवि निराली
मन प्रफुल्लित हो उठा गगन।

— विजया लक्ष्मी

विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।

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