मुक्तक/दोहा

कहें सुधीर कविराय


साहित्य 


मातु शारदे की कृपा, होती  जिसके  शीश।
वही लिखे साहित्य को, बन जाता वागीश।।

शब्द सृजन की साधना, क्या है कोई  खेल।
बिना  सतत  अभ्यास  के, शब्द  शब्द  बेमेल।।

जन-मन के जो काम का, सृजन लिखें हम आप।
वरना  सब  बेकार  है, बन  जायेगा  भाप।।

चोरी अब साहित्य की, बहुत हो रही आज।
शर्म तनिक आती नहीं, करते जो ये काज।।

सतत साधना के बिना, कौन बना कविराज।
कोई नाम बताइए, जिसे  जानते  आज।।

याद  रहेगा  बस  वही, जो  पावन  साहित्य।
लोगों के दिल में सदा, है बन चमके आदित्य।।

मैया  मेरी  शारदे, दो  मुझको  वरदान।
मुझको भी होता रहे, शब्द सृजन का ज्ञान।।


विरोधी


आज आप क्यों जा रहे, नीति नियम को छोड़।
है  विरोध की  राह को, अहंकार  से  जोड़।।

कौन विरोधी आपका, नहीं आपको ज्ञान।
इतना  मूरख तो  नहीं, बने  हुए  अंजान।।

होता सच का आज है, पग-पग बड़ा विरोध।
एक  काम जैसे  बचा, बस  डालो  अवरोध।।

निजी स्वार्थ की आड़ में, करते बड़ा विरोध।
और वही जब मैं करूं, बनते  बड़ा अबोध।।

जिसको माना आपने, स्वयं विरोधी आप।
वही मिटाता आ रहा, तव का सब संताप।।


प्रशांत


शांत भाव जो रह सके, वो उतना ही श्रेष्ठ।
बिना कहे ही मानते, उनको सब ही ज्येष्ठ।।

जितना ऊँचा भाव हो, उतना उच्च प्रशांत।
जीवन के विज्ञान का, है पावन दृष्टांत।।

शांत वृत्ति वाला सदा, आदर पाता खूब।
उत्तम उसकी भावना, रहता जिसमें डूब।।

आज समय का देखिए, लगते सभी अशांत।
वही आज बस है सुखी , जो मन से संभ्रांत।।

सबके मन का आज है, बड़ा दु:खद वृतांत।
फिर भी सबकी भावना, भीतर से आक्रांत।


विजय पताका


विजय पताका थामकर, आगे बढ़ना काम।
 कदम नहीं पीछे हटे, नाहक हो बदनाम।।

भारत माता को नमन, कर भरना हुंकार।
विजय पताका थामकर, जाना सीमा पार।।

विजय पताका थामकर, करना तभी घमंड।
साहस अपने आपका, और सख्त भुजदंड।।

विजय पताका थामकर, हम भारत के लाल।
आन बान के संग में, दुश्मन  के  हम काल।।

विजय पताका थामकर, कफ़न बाँध कर शीश।
सीमा पर डटकर खड़े, बोलो  जय  जगदीश।।


तुषार, ओस, कुहरा, शीत, ठिठुरन 


अब तुषार भी रंग में, आंँख  दिखाए  खूब।
आज कृषक भी क्या करें, गया शोक में डूब।।

ओस फसल का कर रही, अब तो सत्यानाश।
सूर्यदेव अब छोड़िए, आकस्मिक अवकाश।।

दुर्घटनाएं बढ़ गई, ले  कुहरे  की  ओट।
संयम रखते हम नहीं, पल-पल खाते चोट।।

शीत लहर जब से बढ़ी, सबको इतना ज्ञान।
वृद्ध और बीमार की, मुश्किल  में  है  जान।।

ठिठुरन बढ़ती जा रही, और संग में रोग।
मुँहजोरी जो भी करे, वही रहा है  भोग।।


योग क्रिया


तन मन सुंदर चाहिए, करो नियम से योग।
दूर रहे सब व्याधियाँ, रहिए सभी निरोग।।

योग क्रिया नित जो करे, निद्रा आलस त्याग।
ऋषि मुनि कहते सभी, जीवन का अनुराग।।

योग साधना व्यर्थ है, रहो दूर सब लोग।
होगा जीवन में वही, जो होगा संयोग।।

अपने भारत में बढ़े, नित्य योग का सार।
आज विश्व मम राष्ट्र का, करता है आभार।।

योग क्रिया से आपका, तन मन होता शुद्ध।
स्वस्थ सुखी काया रहे, आप भी हों प्रबुद्ध।।


दो रघुवर निर्वाण 
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सहन  नहीं  अब‌ वेदना, नहीं  छूटते  प्राण।
विनती सुनते क्यों नहीं, दो रघुवर निर्वाण।।

इतना तीखा आपने, दिया छोड़ जब बाण।
और विनय अब कर रहे, दो रघुवर निर्वाण।।

उसकी वाणी वेदना, संकट में हैं प्राण।
विनय करुँ मैं आपसे, दो रघुवर निर्वाण।।

चाह रहे सब आपसे, दो रघुवर निर्वाण।
भले पड़ोसी का रहे, संकट में ही प्राण।।

जिद  मेरी  भी  आपसे, मारो  चाहे  बाण।
बाण मारकर ही सही, दो रघुवर  निर्वाण।।


मातु- पिता


मातु पिता के  चरण  में, शीश  झुकाकर  माथ।
गमन किया श्री राम ने , लखन सिया के साथ।।

मातु पिता का हो रहा, अब तो नित अपमान।
इसमें बच्चे आज के, समझें  अपनी‌  शान।।

सूनी आँखों में दिखे, मातु पिता का दर्द।
उनका जीवन तो बना, जैसे दूषित गर्द।।

मातु पिता अब रो रहे, रख  माथे  पर  हाथ।
समय आज ऐसा हुआ, बस ईश्वर का साथ।।

चरणों में झुकते हुए, शर्म  करें  महसूस।
झुकते हैं जब आज वे, लगता देते  घूस।।

चरणों  में  संसार  है, मातु-पिता  के  जान।
जिसको आती शर्म है, वो बिल्कुल अज्ञान।।

मातु-पिता को देखिए, अब कितने असहाय।
जीना  दुश्कर हो  रहा, नया लगे  अध्याय।।

बात सभी भूलो नहीं, गाँठ  बाँध  लो  आप।
विवश नहीं अब कीजिए, मातु-पिता दें शाप।।


विविध 


गणपति अब कुछ कीजिए, कहाँ मगन हैं आप।
कृपा आप कुछ कीजिए, या फिर  दीजै  शाप।।

हाथ जोड़ हनुमान जी, कहते प्रभु श्री राम।
ठंडी इतनी है बढ़ी, कर लूं क्या विश्राम।।

इन साँसों पर आपको, इतना क्यों है नाज़।
जाने कब ये दे दगा, और छीन  ले  ताज।।

जान रहे हम आपको, ओढ़ रखा है खोल।
कब तक ऐसे चक्र में, लिपट रहोगे बोल।।

मर्यादा का वो करें, चीर हरण पुरजोर।
और वही दिन रात ही, करते ज्यादा शोर।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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