राजनीति

गणतंत्र दिवस मनाने और गणतंत्र जीने में अंतर

कल 26 जनवरी है। इस दिन को हम लोग गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। हर वर्ष मनाते हैं। यह एक परंपरा है और हम लोग परंपरावादी हैं, जो परंपरा पर चलना ही अधिक सुविधाजनक समझते हैं। परंपरा पर चलने में अधिक कुछ करना नही पड़ता। यह ठीक कम्प्यूटर के कापी, कट और पेस्ट जैसा है। पुनः टाइप करने से बच जाते हैं। जैसा पिछली बार किया था, ठीक वैसा ही, उसमें परिवर्तन करने पर तो काम करना पड़ेगा। कुछ साोचना पड़ेगा। इसकी जहमत कौन उठाए? हम पर बहुत काम है। समय नहीं है।

हाँ! कुछ लोग नया भी सोचते हैं। गणतंत्र मनाने से क्या लाभ? क्यों न इसका उपयोग व्यक्तिगत कार्यो के लिए किया जाय। ऐसे लोगों के लिए यह दिवस एक जी.एच. अर्थात राजपत्रित अवकाश है। यदि विभाग गणतंत्र दिवस के लिए उनको रोकना चाहता है, तो उसे इसकी प्रतिपूर्ति के लिए किसी अन्य दिन अवकाश देना चाहिए। किन्तु ये विभागाध्यक्ष नाम के अधिकारी बड़े ही दुष्ट होते हैं। उनमें कुर्सी का अहंकार होता है। वे अपने आपको जाने क्या समझते हैं? कर्मचारियों को गणतंत्र के नाम पर एक अवकाश मिलता है, उन्हें उसका उपभोग करने नहीं देते। हमें क्या करना, गणतंत्र दिवस मनाकर? कहीं से गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में उपस्थिति होने का प्रमाण पत्र बनवा लाएंगे। बाकी इस तरह के समारोह में हम समय नष्ट क्यों करें? अपने बीबी और बच्चों के साथ रहकर अवकाश का उपभोग करेंगे। हम सरकारी नौकर हैं। नौकरी करना ही बहुत बड़ा काम है। इस गणतंत्र बगैरहा का बौझ हमारे कंधे पर क्यों डालते हो भाई!

उपरोक्त अनुच्छेद में सरकारी कर्मचारी का दर्द लिखा है। वास्तविकता यही है कि अधिकांश सरकारी कर्मचारियों के लिए गणतंत्र दिवस एक राजपत्रित अवकाश मात्र है। वे इस दिन को अपने व्यक्तिगत कामों और मौजमस्ती में व्यतीत करना चाहते हैं। गणतंत्र दिवस के लिए कितने लोगों ने? और किन-किन ने? किन परिस्थितियों में अपने जीवन और प्राणों को बाजी पर लगाया। इससे कोई मतलब उन्हें नहीं होता है। वे देशभक्त नहीं, अपने स्वार्थ के भक्त हैं। बहुत कम सरकारी कर्मचारी गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस को अपनी आस्था और विश्वास के साथ मनाते हैं। गांधी जयंती को तो और भी कम लोग, इस पर विचार करते हैं। वे गांधी जी के विचार और दर्शन में विश्वास नहीं करते। उसे क्यों मनाएं?

वास्तविकता यही है कि हम लोगों में से बहुत कम लोगों को गणतत्र में विश्वास है। हम सब लोग तानाशाही में विश्वास करते हैं। हम गणतंत्र का सम्मान करने का नाटक अवश्य करते हैं किन्तु वास्तव में अपनी मनमर्जी ही चलाना चाहते हैं। हमें असीमित स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, किन्तु दूसरे लोग हमारी मनमर्जी से चलें। ऐसा हम लोगों का प्रयास होता है। गणतंत्र का अर्थ ही समूह का सम्मान करना है। निर्णय करते समय समूह की सलाह लेने और उसकी सलाह को निर्णय में महत्व देकर ही हम गणतंत्र का सम्मान कर सकते हैं। किन्तु करते इसके विपरीत ही हैं। हम अपनी मनमर्जी चलाना चाहते हैं। वह भी व्यवस्था के नाम पर। हम उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहते। अतः हम चाहते हैं कि निर्णय हमारे अनुसार हो, किन्तु निर्णय का भार दूसरे पर ही रहे ताकि हम उत्तरदायित्व और जबावदेही से मुक्त रह सकें। यदि हम गणतंत्र का सम्मान करेंगे तो समूह का सम्मान करंेगे। यदि हम गणतंत्र का सम्मान करेंगे तो समूह की भावना का सम्मान करेंगे। यदि हम गणतंत्र का सम्मान करेंगे, तो अपनी मनमर्जी को प्राथमिकता न देकर समूह के विचार और समूह के हित के अनुसार निर्णय और कर्म करेंगे।

गणतंत्र दिवस मनाना तो एक परंपरा मात्र है। बहुत कम लोगों में इसे मनाने और इसके प्रति सम्मान और उत्साह का भाव होता है। गणतंत्र दिवस मनाने और वास्तव में गणतंत्र का सम्मान करने में बहुत अन्तर है। गणतंत्र के अनुसार जीना तो और भी आगे की विषयवस्तु है। गणतंत्र का सम्मान करते हैं तो इसे समाज व परिवार के स्तर पर ले जाना होगा। गणतंत्र को जीना है तो परिवार में सभी के विचारों को जानकर सभी के हित में सभी के द्वारा मिलकर निर्णय लेकर उस पर सभी को काम करना होगा। गणतंत्र जीना है तो समितियों में की बैठक व चर्चा करनी होगीं। गणतंत्र जीना है तो ग्राम व समाज के स्तर पर जीना होगा।

केवल अकेले बैठकर समितियों की बैठक लिखने वाले कर्मचारी और अधिकारी गणतंत्र का सम्मान नहीं करते। केवल अपने बड़े होने के आधार पर परिवार पर अपनी मनमर्जी थोपना, गणतंत्र की भावना के खिलाफ है। अपने समूह को विचार व्यक्त करने का अवसर न देकर स्वयं ही अपने आपको सर्वेसर्वा समझकर मनमाने निर्णय लेना गणतंत्र जीना नहीं है। गणतंत्र को जीना वास्तव में अत्यंत कठिन व दुष्कर कार्य है। सीमा पर शहीद होना निःसन्देह सम्मान और प्राणों को बलिदान देने का सर्वोच्च कृत्य है। किन्तु प्राणों सहित संपूर्ण शरीर को आजीवन गणतंत्र के लिए जीने में लगा देना, उससे भी अधिक मुश्किल है। यह हर क्षण प्रसव पीड़ा से गुजरने के समान है। हस प्रकार हमें गणतंत्र मनाने, गणतंत्र का सम्मान करने और गणतंत्र जीने में अन्तर को समझना आवश्यक है। हममें से कितने लोग वास्तव में स्वेच्छा से गणतंत्र मनाते भी है? गणतंत्र का सम्मान करना और गणतंत्र के लिए जीना तो बहुत दूर की बात है। गणतंत्र को जीवन में उतारना हैे तो हमें स्वार्थ को छोड़कर अपने आपको गणतंत्र के लिए समर्पित करना होगा।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)

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