चुनावी दोहे
गली-गली दिखने लगे, नेताओं के झुंड ।
गिन तो तुम सकते नहीं, कहो चुनावी मुंड।।
नेताओं के फिर बजे, चिकने थोथे गाल।
आज चुनावी दाँव में, खिचड़ी कंकड़ दाल।।
देना इनको है नहीं , वादे ठेलमठेल।
वादा इनका जानिए, महज चुनावी खेल।।
चलो चुनावी खेल में, हम भी खेलें खेल।
हम सब भी मतदान में, डालें नयी नकेल।।
बस चुनाव तक दीखते, नेता हमको रोज।
मिलते हमको ये नहीं, मम चुनाव की खोज।।
नेता जी की हो गई, ऐसी मोटी खाल।
आज जोड़ने फिर लगे, चलन चुनावी चाल।।
फिर चुनाव की घोषणा, नेता जी बेचैन।
भीख वोट की माँगते, भरे अश्रु हैं नैन।।
वोटर ने भी चल दिया, अपना भी इक दाँव।
बिजली नेता पर गिरी, हारे अपना गाँव।।
आज चुनावी चाल का, भिन्न भिन्न है रंग।
कहीं-कहीं बदरंग है, कहीं बँट रही भंग।।
कूद पड़े मैदान में, चले चुनावी चाल।
हर दल की चिंता बढ़ी, नहीं गल रही दाल।।