कविता

शहीद कहलाता है

ताउम्र वे सब करते रहते हैं
सेवा अर्द्धसैनिक बल में,
कई गंवाते रहे हैं जान
यदा कदा ड्यूटी स्थल में,
होते तो शहीद ही पर
पड़ जाता नियमों का पर्दा,
मर कर सोचना पड़ता है
क्यों न मिला शहीदी दर्जा,
इधर अपने नेता जी
बड़ी शान से चलता है,
नहीं रह पाते सदा अडिग
व्यवस्थानुसार वो ढलता है,
लूट खसोट जनता को
अकूत दौलत वो कमाता है,
भ्रष्टाचार की एक नई
श्रेष्ठ मिसाल वो बन जाता है,
राष्ट्र की उन्नति में सदा कांटे बिछाता है,
मरके जनता के बीच शहीद भी कहलाता है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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