कविता
जो अन्धविश्वास करता है
जीवन भर दुख ही पाता है
किसी को वश में करना है
तांत्रिक के पास वो जाता है
कोई धन,दौलत के लिए करता है
जलन के चलते रक्त बहाता है
खुद ही उसी जाल में फंस जाता है
जब अन्धविश्वास के झांसे में आता है
पग पग पर वो धोखा खाता है
प्रभु को छोड़ मोह,माया में लग जाता है
अपने लालच के कारण मान घटाता है
फिर भी अन्धविश्वास से दूर नहीं होता है.[….]
— पूनम गुप्ता