दोहा मुक्तक
सहारा /सहारे
राम सहारे हम रहें, रामहि पर विश्वास।
और नहीं अब किसी से, बची हमारी आस।।
भटक भटक कर थक गया, मानी मैंने हार।
अब तो केवल राम जी, पर मेरा विश्वास।।
नाहक ही तुम कर रहे, अपनों पर विश्वास।
नहीं सहारा पा रहे, फिर भी रखते आस।।
पछताओगे मान लो, खोलो अब तो नैन।
वरना भूखो मरोगा, या खाओगे घास।।
महाकुंभ
उमड़ा जन सैलाब है, संगम तट के तीर।
जो आ जाता है यहाँ, भक्ति भाव मन धीर।।
त्रिवेणी के दरश से, हो जाता है धन्य।
अहोभाग्य निज का कहे, महाकुंभ का वीर।।
महाकुंभ में दीखता, बहुआयामी रंग।
भौचक्के सब हैं बड़े, और हो रहे दंग।।
दाल न जिनकी गल रही, धुनते सिर हैं रोज।
जन मन के उत्साह से, निस्तेज हो रहा भंग।।