कल्पवास महिमा
कलपवास नर-नारी करिहैं।
भवसागर ते पार उतरिहैं।।
पौष पूर्णिमा शुभ दिन आई।
एक माह रुचि गंग नहाई।।
नियमित ध्यान दान तप धरमा।
चिंतन मनन जपन नित करमा।।
शुद्ध भाव शुचि मन महुं राखे।
संतन वचन सुधारस चाखे।।
साधु संत पद मन भर सेवा।
पाइ अशीष सजीवन मेवा।।
सुरसरि विमल धार उर गहहीं।
बिछा रेणुका भू पर रहहीं।।
गीता-कीर्तन भजन अभंगा।
मानस पाठ करहु नित संगा।।
— प्रमोद दीक्षित मलय