लघुकथा

छाले!

“इन दोनों बच्चों के हाथ में छाले देख रहे हैं आप!” प्रधानाचार्य जी ने गणित के अध्यापक सुमित जी को बुलाकर तलब किया.
“छाले तो दिख रहे हैं, पर इसके लिए आपने मुझे क्यों बुलाया है?”
“आप ही जिम्मेदार हैं इन छालों के, इसलिए! आपने अपने रूल का प्रयोग किया था?”
“जी वो तो पूरी कक्षा को डंडे लगाए थे, ये लोग होम वर्क नहीं करके आए थे.”
“आपने कितने बच्चों से पूछा था?”
“जी, जी, चार…” अपना कसूर कुछ-कुछ समझ में आने पर बड़ी मुश्किल से सुमित जी बोल पाए.
“हद कर दी आपने…..चार बच्चों से होम वर्क की बात पूछकर और आपने 40 बच्चों को डंडे मार दिए!” सुमित जी सिर झुकाए खड़े रहे.
“जानते हैं, ये दो बच्चे बेकसूर थे, आपके डंडे इनके हाथों पर नहीं, दिल पर लगे हैं. दिल का वही दर्द छाले बन गए हैं!” सुमित जी को काटो तो खून नहीं!
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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