कविता

महाकुंभ ही मोनालिसा बन आया

महाकुम्भ में मोनालिसा की,
महकती-सी मुस्कान,
चंदन-रुद्राक्ष-मोती माला बेचती,
बड़ी अनोखी शान।

खूबसूरत ग्रीवा वाली,
लहराते हुए बड़े-बड़े झुमके,
हिरनी-सी आंखों वाली,
तनिक नहीं शर्माती,
बात करते बेखटके।

महाकुंभ ही मोनालिसा बन आया,
इसकी छवि ने जग को है तरसाया,
महाकुंभ भूल मोनालिसा को पूजें,
अजब जमाने ने गज़ब है ढाया।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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