मेरे राम
हे राम-रघुनाथ विस्तीर्ण है प्रेम हमारा,
हृदय में है बस मेरे अब नाम तुम्हारा,
मेरे शुष्क तप्त से, उजड़े तन-मन में,
शीतल बयार-सा प्रिय प्रवेश तुम्हारा।
तुम आनंदमय, मैं आनंद की प्यासी,
तुम अखिल लोक-नृप, मैं तेरी दासी,
हे अयोध्या-नंदन तुम सर्व-समर्थ हो,
चाहो तो पल भर में हर लो मेरी उदासी!
तुम प्रेम की अनूठी मिसाल हो मेरे राम,
सबके मन के जाननहार, पूर्णकाम,
दुविधा दूर करो मेरे मन की हे दीनबंधु,
दिखलाओ अपनी छवि अप्रतिम-ललाम।
बहने दो प्रेम की प्रेमिल-स्नेहिल धारा,
हरदम गूंजे मन में प्रभु नाम तुम्हारा,
तुम ही मेरे जीवन-धन, आनंदधाम,
हे राम-रघुनाथ विस्तीर्ण है प्रेम हमारा।
— लीला तिवानी