एक्सप्रेस
रेलगाड़ी आती है,
स्टेशन पर रुकती है,
बहुत लोग चढ़ते हैं,
बहुत लोग उतरते हैं,
चढ़ना उतरना यात्रियों की नियति है,
रेलगाड़ी कीमती है,
मगर रेलगाड़ी का आना ही,
या फिर आकर रुकना ही,
यदि बंद हो जाए,
तो यात्री कहां जाएंगे,
नेता जी रेल है,
मतदाता यात्री है,
नेताजी चुनाव के समय बार बार आता है,
सबकी समस्या या जरूरतें पूछता है,
यह सब चुनाव के समय तक के लिए,
नेताजी का चुनाव जीतते ही
मतदाताओं से संपर्क न रहे तो,
मानिए नेताजी एक्सप्रेस बन गया,
अब वह किसी यात्री को नहीं ढोएगा,
उस स्टेशन या उस क्षेत्र से।
— राजेन्द्र लाहिरी