डिफॉल्ट

कहें सुधीर कविराय

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 लगाव

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अब लगाव दिखता कहाँ, अपने अपनों बीच।

ठना  कुटुंबी  रार  है,   होती  खीचम-खींच।।

हम  लगाव  की  बात  को, कहाँ  सोचते  आज।

सबका अपना स्वार्थ है, निज हित का ही काज।।

बच्चों को भी अब नहीं, मातु- पितु से लगाव।

देते  वे  ही  दर्द  हैं, और  कुरेदें  घाव।।

अब लगाव की चाहना, रखते  हैं  हम  लोग।

काम लगे तब मिल सके, यथा समय सहयोग।।

वो लगाव की कर रहे, सबसे ज्यादा बात।

जिसे समझ आती नहीं, होते क्या जज़्बात।।

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पूरनमासी/ महाकुम्भ /मकर संक्रांति 

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पौष मास की पूर्णिमा, संगम तीरे भीड़।

कल्प वास के मोह में, बने अनेकों नीड़।।

पूरनमासी  आज  है, उमड़ा  जन  सैलाब।

सबके हित परलोक का, उमड़ रहा है ख्वाब।।

संगम तट पर आ गया, भक्तों का सैलाब।

विश्व चकित हैं देखता, जैसे कोई ख्वाब।।

महा कुंभ में दिख रहा, तरह – तरह  का  रंग।

जन मानस में भक्ति का, भाव आस्था संग।।

महा कुंभ ने खींच दी, सबसे  बड़ी  लकीर 

जाति-धर्म को भूलकर, सबकी है निज पीर।।

भक्तों  के  सैलाब  से, घट -घट में है शोर।

बारह वर्षों बाद ये, आया कुँभ का भोर।।

सारे पावन तट भए, भक्तों से गुलजार।

भक्त लगाते डुबकियाँ, समझा जीवन सार।।

महा कुंभ ने तोड़ दी, दीवारें  बहु  बार।

सीमा के उस पार से, आते  भक्त  हजार।।

दिव्य दिखी संक्रांति की, महाकुंभ में आज।

संगम में डुबकी लगी, ध्यान दान है काज।।

महाकुंभ का पर्व ये, शुभता लाया साथ।

सनातनी विश्वास को, विश्व झुकाये माथ।।

महाकुंभ से मिल गया, दुनिया  को  संदेश।

जहाँ त्रिवेणी मेल हो, सनातनी  परिवेश।।

मकर राशि में आ गये, सूर्य  देव  भगवान।

आज पर्व संक्रांति का, कर लो पावन स्नान।।

पहला शाही स्नान भी, संक्रांति  शुभ  संग।

संगम तट पर दिख रहा, अद्भुत पावन रंग।।

खिचड़ी गुड़ तिल दान का, करते हैं सब दान।

उससे पहले कर रहे, स्नान, ध्यान, सम्मान।।

सूर्य उत्तरायण हुए, नित्य बढ़े अब ताप।

हर दिन घटता जाएगा, छूट ठंड का जाप।।

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स्नान 

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महा कुंभ मेंं  हो  रहा, सबका  संगम  स्नान।

सांसारिकता दूर हो, मोक्ष का निज  ध्यान।।

महा कुंभ में  भीड़  का, चालू  जबसे  स्नान।

पापी भी कुछ लोग हैं, उनका बिगड़ा ज्ञान।।

अमृत स्नान के फेर में, छूट गया जब हाथ।

याद नहीं उसको रहा, अम्मा भी थी साथ।।

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यमराज 

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आज भोर में आ गए, मम प्रियवर यमराज।

आप  पास  कर  दीजिए, छुट्टी  मेरी आज।।

भेजा है यमराज ने, मुझे  नया  सम्मान।

और संग संदेश भी, मानो प्रभु अहसान।।

यमदूतों ने  भी किया, संगम  तट  पर स्नान।

धर्म कर्म में वे रँगे, किया  ध्यान  जप  दान।।

तड़के गंगा तीर के , जब  पहुँचे  यमराज।

स्नान ध्यान के फेर में, भूल गए निज काज।।

भीड़ देख यमराज को, आया  इतना  ध्यान।

काम धाम तो बाद में, पहले कर लूँ स्नान।।

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श्रद्धा-शबुरी

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भक्ति शक्ति का हैं बने, श्रद्धा-शबुरी ध्याय।

साईं दर्शन श्रेष्ठ है, उत्तम  श्रेष्ठ  उपाय।।

श्रद्धा-शबुरी से मिले, हमको सुंदर ज्ञान।

भले समझ आता नहीं, जाने कौन विधान।

श्रद्धा-शबुरी  दे  रहा, जीवन  का  आधार।

भक्ति शक्ति से हो रहा, जन मन का उद्धार।।

श्रद्धा  से  शबरी  रही, बाट  राम  की  जोह।

शबुरी उसके थी हृदय, तब तो मिटा विछोह।।

शबरी  जूठे  बेर  में, श्रध्दा  का  अनुराग।

मगन राम जी हो गये, शबुरी में नहिं  दाग।।

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श्रुति

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वाणी ऐसी बोलिये, जिसमें श्रुति रसधार।

लगे सभी को पावनी, सबका ये व्यवहार।।

ऋषियों ने इसको सुना, शिष्यों ने विस्तार।

दिव्य भाव की भावना, यही धर्म का सार।।

जिसमें श्रुति का भाव है, बनता वही महान।

जो नहिं इतना  ध्यान दे, वो रहता अज्ञान।।

वाणी जो श्रुति योग्य हो, उस पर भी हो ध्यान।

और  दंभ  के  फेर  में, बनिए  मत  अंजान।।

श्रुति से सिर में दर्द हो, भला करें  प्रभु  राम।

राम नाम से भी बड़ा, भला कौन है  काम।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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