लघुकथा

बसंत

कोयल ने पेड़ से पूछा- “अरे सचमुच बंसत आ गया है क्या सच बताना मुझसे झूठ मत बोलना मैं झूठ को पकड़ने में महिर हूं।एक मिनट भी नहीं लगेगा मुझे जानने में कि सच क्या है। मैं पूछ लूंगी किसी से जो मुझसे मिलेगा।जब मैं यात्रा को जाऊंगी।”
पेड़- “ऐसे कह सकते हो कि बसंत आ गया है, पर इस बसंत में पेड़ों का अंत दिख रहा है।और मैं देख सकता हूं विनाश को भी जो मनुष्य खुद उसे बुला रहा है क्योंकि उसे जंगल भा रहा है। वहां वो लकड़ी को काटकर बना रहा है बस्तियों को। जहां पहले हरियाली रहा करती थी। अरे ये बसंत नहीं है! पूछ लेना किसी से भी, जो मन का सच्चा हो वो बता देगा कि बसंत में पेड़ काटे नहीं जाते है बल्कि पेड़ों को लगाया जाता है।”

— अभिषेक जैन

अभिषेक जैन

माता का नाम. श्रीमति समता जैन पिता का नाम.राजेश जैन शिक्षा. बीए फाइनल व्यवसाय. दुकानदार पथारिया, दमोह, मध्यप्रदेश

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