कविता

रूमक-झुमक आया बसंत!

उमंग, उल्लास, आह्लाद, आनंद,

प्रकृति रूप निखरी मनहर रंगत।

नवल चेतना का रूमझुम आगाज,

बहार ले फिर लौट आया बसंत।।

सृष्टि रमणीने किया अनुपम शृंगार, 

कोमल, सुंदर, रंगबिरंगे फूलों से।

धानी चूनर ओढ इतरायी वसुंधरा,

शरमाती नयी नवेली दुल्हन हो जैसे।।

गुलाब, चंपा, चमेली महकी-महकी,

लहराती पवन चली बहकी-बहकी,

प्रेम रसधार छमछम देखो बरसी,

स्वागत करने ऋतु राज बसंत का।।

टहनियों पर नव कोंपले हैं सजी,

नवरंगी छटाओं ने रंगोली रचायी।

प्रकृति का रूप रंग अति मनोहर,

रवि किरणें सुनहरी उजियार लायी।।

आलाप सुस्वर सुरमई संगीत का,

बसंत आगमन से कण-कण झंकृत।

चहचहाहट, कलरव पंछी गण का,

सौरभ ले फिर लौट आया बसंत।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

Leave a Reply