कुण्डलिया छंद
खुशियां जीवन में खिली, सुरभित था आनंद।
चाहा वो पाया सदा, मिला हर्ष मकरंद।।
मिला हर्ष मकरंद, भ्रमर थे गुनगुन करते।
सपनों में नव रंग, पुष्प थे सुंदर सजते।।
थी किस्मत की चाल, टूट कर बिखरी कलियां ।
करते सब मिल लूट, नहीं अब खिलती खुशियां।।