चुनावी झंझटो से मुक्ति के तरफ अग्रसर
इंसान के ऊपर जब तक किसी कार्य का भार रहता है तो वह बड़ा ही परेशान ,बेचैन , तकलीफ में रहता है। उसकी सारी ज्ञानेंद्रिया उस काम के ऊपर ही अपना ध्यान लगाए रहती हैं ।चाहे वह कैसा भी काम हो छोटा हो या बड़ा हो।एक चिन्ता तो बनी ही रहती है । जिम्मेदारी बनी रहती है जवाब दारी रहती है । और जब वह कार्य मुक्त हो जाता है तो एक आजादी रहती है दिमाग तनाव रहित रहता है। वह अपना समय किसी और कार्य या किसी और तरफ पूरी तरह लगा सकता है। कहीं घूमने जा सकता है कहीं मनोरंजन करने जा सकता है।
हम इंसान होने के साथ ही देश की जनता भी है और रोजी रोजगार, घर द्वार, के अलावा हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी होती है। सब से बड़ा काम है अपने देश के नेताओं को चुनना। यह एक ऐसा काम है कि एक अनार सौ बीमार अर्थात वोट एक ही रहता है पर उसके दावेदार हजारों रहते हैं । और सभी बीमार चाहते हैं कि यह वोट उसको ही मिले। ऐसे में जनता की जिम्मेदारी जबरदस्त तरीके से बढ़ जाती है। अब जनता को यह देखना रहता है कि कौन सा अनार सड़ा हुआ है कौन सा कीड़ा लगा हुआ है। और कौन सा अनार कच्चा या पक्का है । और कौन सा सबसे बढ़िया है ।यह बड़ा ही भारी काम है।थोड़ा सा गड़बड़ाए तो पांच साल तक जीभ का स्वाद कसैला रह जाता है और मन पर एक बोझ चढ़ जाता है ।
अपने देश में लोकतंत्र है लोकतंत्र में जनता ही भगवान होती है सबसे सर्वोपरि होती है । लोकतंत्र अर्थात जनता के द्वारा चुना हुआ । अब जनता का मन चाहे वह जिसको भी अपना सेवक चुने अब जनता के ऊपर ही यह भारी काम रहता है कि वह ऐसे व्यक्ति को चुने जो उसका हर प्रकार से 5 सालों तक पूरी तरह ख्याल रखना रहे और उसके हाल-चाल को ठीक-ठाक बनाए रखें। वह उसका इतना ख्याल रखें की उसके मन और मस्तिष्क की दशा एकदम ठीक-ठाक रहे।
अब यह अलग बात है कि चुनाव जीतने के बाद जनता खुद सेवक की मुद्रा में आ जाती है। और जिसे सेवक रहना चाहिए वह राजा जैसा बर्ताव करने लगता है। लेकिन सच पूछिए तो जनता के पास लोकतंत्र में अपने मन का सेवक चुनने का जबरदस्त कार्य भार रहता है । उसे बहुत ही दिमाग लगाना पड़ता है कि वह किस को चुने, किसको न चुने। किसी को चुने तो क्यों चुने और क्या ऐसी खूबी है कि उसको ही चुने। सब ऐसे सवाल है कि जनता का सर चक्कर घिन्नी बनाए रखें हैं। उसे हैरान परेशान किए रहते हैं।किसको अपने सिर माथे पर बिठाए और किसको झोला झक्कड़ उठाकर जाने के लिए गुड बाय कहे। कभी-कभी तो चुनाव के दिन तक वोट डालने के समय तक जनता बेचारी बहुत ही कष्ट में रहती थी। कि आखिर वह किसका चुनाव करें और क्यों चुनाव करें। यह अंतर मन का द्वंद उसकी जान लेता रहता है।
लेकिन अपने देश के नेता बहुत अच्छे हैं। वह पूरा प्रयास करते हैं की जनता का कार्य भार कम से कम रहे। जनता सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार और घर द्वार के तरफ ही फोकस करें । उसके ऊपर चुनाव का भार ज्यादा ना पड़े । भले ही उसके जेब पर ज्यादा भार पड़ जाए। लेकिन दिल और दिमाग पर थोड़ा भी भार ना पड़े। उसके दिमाग और दिल का ख्याल पूरी तरह रखते हैं । उन्होंने जनता को सोचने के काम से तो बिल्कुल कार्य मुक्त ही कर दिया है। सोचने का काम उन्होंने चैनल वालों के हवाले कर दिया है। वही मेहनत करेंगे वही बतायेंगे है कि हमे क्यो, कैसे, किसको चुनना है । किसके पास कौन सा आॅफर है और कौन खाली देगची मे चम्मच चला रहा है । इसके अलावा भी बहुत सारे विकल्प है जिनके द्वारा आपको बता दिया जाएगा कि किसे वोट करना है कहां वोट करना है और क्यों वोट करना है। आप बिल्कुल भी तनाव मत लीजिए और बिल्कुल भी परेशान मत होइए।
अपने देश के नेता तो इतने अच्छे हैं कि वह तो जनता के वोट करने का कार्यभार भी अपने ऊपर ले लेते । लेकिन क्या किया जाए संविधान से ऐसा अभी सुविधा नहीं मिला हुआ है । अगर संभव होता तो आपके नाम का टप्पा लगाने का मेहनत भरा काम भी वह खुद ही कर लेते। लेकिन यह जनता का दुर्भाग्य है कि अभी ऐसा कानून नहीं बना है। दुआ कीजिए कि वोट देने के कार्य भर से भी आप जल्द से जल्द मुक्त हो जाए । और अपने घर में मुफ्त का रासन खाकर चैन की बंसी बजाए और अपने घर में पड़े रहे और अपने आप को धूप छांव बरसात से बचाए रखें।
— रेखा शाह आरबी