मंजिल पाना है अभी बाकी!
मैं सागर की नाव पुरानी,
है मेरी अनबूझ कहानी,
तूफानों से टकरा न पाती,
संभालो मुझे हे राम-वरदानी।
केवट बनकर आना प्रभु,
नैय्या पार लगाना प्रभु,
भवसागर से पार-लगैया,
मुझको भूल न जाना प्रभु।
सुख-दुःख आनी-जानी माया,
जैसे धूप कभी, कभी छाया,
जानकर भी रही अनजानी,
शरण पड़ी तेरी हे रघुराया।
उछल-उछलकर गोते खाती,
तेरे ही बल पर बढ़ती जाती,
रघुकुलनंदन राम-रमैया,
मंजिल पाना है अभी बाकी!
— लीला तिवानी