कविता

अंतिम पत्र : तुम्हारे नाम

तुम्हारे नाम ये आखिरी खत,
लिख रहा हूँ दिल की स्याही में डूबो कर,
शब्द कांप रहे हैं कागज़ पर,
पर जज़्बात बहते हैं अश्कों में खोकर।
सुना है, डोली सजी है तुम्हारी,
सपनों की सेज पर बैठी हो तुम,
मेहंदी की लाली हाथों में भरकर,
किसी और के नाम की हो चुकी हो तुम।
मुझे याद है, वो पहली मुलाकात,
बारिश की बूँदों में भीगती तुम,
हवा में उड़ती ज़ुल्फ़ें तुम्हारी,
और वो आँखों में छिपे अनगिनत ग़म।
तब मैंने जाना था तुम्हारी हँसी का दर्द,
तुम्हारी चुप्पी का गहरा राज़,
हम दोनों ने मिलकर जिया था,
वो अधूरा सा पर खूबसूरत सा अंदाज़।
पर अब जो रिश्ता था बस नाम का रह गया,
हमसफ़र का सपना, अधूरा सा रह गया,
तुम्हारी डोली उठेगी पर मेरे अरमानों की चिता जल जाएगी,
तुम्हारे नाम की ये आखिरी पुकार, हवाओं में खो जाएगी।
काश, समाज की रस्में ना होती,
काश, तक़दीर हमारी होती,
काश, तुम एक बार मुड़कर कहती,
“चलो भाग चलते हैं कहीं दूर कहीं…”
पर ये काश भी अब अधूरा रहेगा,
तुम दुल्हन बनकर सजी रहोगी,
मैं अजनबी बनकर बिछड़ जाऊँगा,
पर दिल में तुम्हारी याद लिए रहूँगा।
तुम्हें बिदाई में रोते देखा तो,
सोचूंगा, कहीं वो आँसू मेरे लिए तो नहीं?
अगर कभी नाम मेरा भी आ जाए लबों पर,
तो याद रखना, मैं आज भी वहीं हूँ, तुम्हारे लिए… वहीं…
भवदीय
— हेमंत सिंह कुशवाह

हेमंत सिंह कुशवाह

राज्य प्रभारी मध्यप्रदेश विकलांग बल मोबा. 9074481685

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